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पार करके आना पड़ा।"
एक युवा प्रहरी ने आकर प्रणाम किया। "क्या समाचार है?" "उन तमिलों का एक गुप्तचर हमारे हाथ लगा है।" गंगराज ने बिट्टिदेव की ओर देखा।
बिट्टिदेव ने कहा, "उसे पकड़कर यहाँ लावें।" उस गुप्तचर को वहाँ लाया गया। अम्मलदेवी ने बिट्टिदेव के कान में कुछ कहा। बिट्टिदेव ने चकित दृष्टि से उस गुप्तचर की ओर देखा। फिर मायण की तरफ देखा और पूछा, "इसे तुमने देखा है?"
"नहीं, देखा नहीं। परन्तु इस वेशभूषा से मैं परिचित हूँ। यह उस तमिलनाडु के दामोदर की है।" मायण ने कहा।
"ठीक । हम और रानीजी इससे सब समझ लेंगे-यह रानीजी की सलाह है। आप लोग जाकर अपने दूसरे काम देख सकते हैं। मायण, तुम यहीं रहो। अगर यह कुछ गड़बड़ करेगा तो हमें तुम्हारी सहायता की आवश्यकता पड़ सकती है।" बिट्टिदेव ने आज्ञा दी।
गंगराज, उदयादित्य, पुनीसमय्या और माचण-खेमे से चले गये। बिट्टिदेव, रानी बम्मलदेवी, वह गुप्तचर और मायण-ये वहाँ रह गये।
"मायण! तुमने झूठ क्यों कहा?" बिट्टिदेव ने पूछा। "इसे नहीं देखा है-यही बात न?" "हाँ, तो यह कौन है जानते हो?"
"यह, हाँ मालूम है। उस दामोदर को छकाकर उसका वेष धारण कर आनेवाली..."
"क्यों रुकते हो? चट्टला है, कहो।" बम्मलदेवी में बात पूरी की।
"इस तरह तुमको यहाँ क्यों आना चाहिए था? तुम, चट्टला होकर आती तो क्या यहाँ तुमको प्रवेश नहीं मिलता?" बिट्टिदेव ने पूछा।
इसका एक उद्देश्य था। यदि यह सन्निधान को ठीक लगे तो ऐसा कर सकते हैं। नहीं तो छोड़ सकते हैं। हमारे यहाँ लोगों ने दामोदर को नहीं देखा है। इस लिबास में जब तलकाडु से निकली तब भान हुआ कि सभी ने मुझे दामोदर ही समझ लिया। उसकी इस राजमुद्रा और लिबास ने मुझे आसानी से उस नगर से पार होने दिया। उस दामोदर का पता लगने में अभी देरी होगी। इतने में तलकाडु में यह अफवाह फैला दी जाय कि वह गिरफ्तार हो गया तो वहाँ के लोग घबरा जाएंगे। इस लिबास में दूर से उनके सैनिक देख लें तो उन्हें विश्वास भी हो सकता है।" चट्टला ने कहा।
"गंगराज इस युद्ध के संचालक हैं। उन्हें बुलवाकर बातचीत करके फिर निर्णय
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तोन :: 295