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तो ठीक ही था। परन्तु राज-काज का निर्वहण करनेवाले महाजन और राजप्रतिनिधि आदि लोगों के अनैतिक आचरणों से जनता ने शान्ति खो दी थी।"
"हो सकता है अब भविष्य में आप लोगों को कोई कठिनाई नहीं होगी। यहाँ आनेवाले पोय्सल प्रतिनिधि गैरों की तरह अधिकार चलाने नहीं आएंगे। घर का होकर घरवालों की तरह सारी व्यवस्था संभालेंगे। आप लोग चिन्ता मत करें।" पुनीसमय्या ने कहा।
"फिर भी कुछ लोगों के जीवन में सुधार लाना कठिन है।" पुजारी बोले।
"इन सब बातों पर आज शाम को होनेवाली नगरप्रमुखों और सार्वजनिकों की सभा में पूर्ण रीति से विचार करेंगे। आप उस समय वहाँ उपस्थित रहें।" पुनीसमय्या ने कहा।
"जो आज्ञा!" पुजारी ने सूचित किया।
राजदम्पती वैधेश्वर महादेव और मनोन्मणी देवी की सभी प्रकार की पूजाअर्चना आदि करवाकर राजभवन पधारे। मन्दिर आते समय पालकी में आये थे, अब जाते समय नगरदर्शन की इच्छा से राजा और रानी दोनों अश्वारोही होकर चले । दोनों के दायें-बायें रक्षक दल साथ चल रहा था। अभी नगर के लोग भयभीत ही थे। पूर्णतया निर्भर न होने के कारण अधिक संख्या में पुरुषों ने ही राजदर्शन पाया। कहींकहीं छत पर सड़ो कु स्त्रियों को भं, दर्शन हो गये थे।
वास्तव में तलकाडु की जनता ने ऐसे दृश्य को कभी देखा ही नहीं था। राजदम्पती अश्वारोही होकर इस तरह उनके बीच आएँगे, यह उनके लिए बहुत आश्चर्य की बात थी। कुलोतुंग जब आया था सो वह घोड़े-जुते रथ में आया था, उसके साथ रानी नहीं थी। यहाँ महाराज के साथ रानी युद्ध में आयीं. इतना ही नहीं, नगर के बीच मार्ग में इस तरह घोड़े पर सवार होकर निकली तो लोगों का कुतूहल जाग उठा था। कुतूहल की बात ही थी। उनके लिए तो ये नये राजा हैं न! उनके बारे में भी जानने का कुतूहल जाग उठा। शाम की सभा में बड़ी संख्या में लोग इकट्ठे हुए।
राजकाज की व्यवस्था, नयी नियुक्तियाँ, उनके अधिकार की व्याप्ति, आदि सभी बातों पर विचार-विनिमय हुआ, राज-कार्य-निर्वहण-सूत्र विश्वस्त व्यक्तियों को सौंपकर शेष कार्यों की व्यवस्था उनके, जो अब तक कार्य निर्वहण करते रहे, हाथों में ही रहने के कारण उन्हीं लोगों को राजनिष्ठा का प्रमाण-वचन स्वीकार करवाकर सौंप दी गयी।
पुजारी वर्ग और महाजनों की सलाह लेकर कीर्तिनारायण मन्दिर के लिए स्थान भी चुन लिया गया।
यहाँ के राजकाज के निर्वहण का सम्पूर्ण दायित्व मात्रण दण्डनाथ को सौंप
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 299