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की बात पर विचार कर यह निश्चय किया गया कि तब तक माचण दण्डनाथ तलकाडु में ही रहें।
अब सलकाडु के गंगों के राजभवन में बिट्टिदेव और बम्मलदेवी का पड़ाव हुआ।
दूसरे दिन प्रात:काल ढिंढोरा पिटवाया गया-"गंगवाड़ी, अब मुक्त हो गयी है। यहाँ के निवासियों को अब भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है। नगरप्रमुख और महाजनों से पोयसल महाराज बिट्टिदेव मिलना चाहते हैं। आगे राज-काज की व्यवस्था के सम्बन्ध में विचार-विनिमय करना चाहते हैं। इसी को आह्वान मानकर कल सन्ध्या राजभवन के बाहर के मुखमण्डप में आयोजित सभा में पधारें।" ढिंढोरे के कारण यह खबर फैल गयी। पिछले दिन के निर्णय के अनुसार राजदम्पती चट्टला-मायण के साथ पूजा-अर्चा कराने मन्दिर में गये। पूर्णकुम्भ के साथ स्वागत हुआ। तीर्थ-प्रसाद बाँटते समय चट्टला-मायण को देखकर पुजारीजी चकित होकर रह गये।
"क्यों? क्या हुआ?" बिट्टिदेव ने पूछा। "ये लोग?" मायण और चट्टला की ओर निर्देश किया। "आप जानते हैं?" बिट्टिदेव ने पूछा।
"ये तो बन्दी हुए थे न?" कहकर पुजारी चकित हो उनकी ओर फिर से देखने लगा।
"चट्टला. तुमने दामोदर से जो राजमुद्रायुक्त अंगूठी छीनी थी, उसे पुजारी को दिखाओ।" बिट्टिदेव ने कहा।
चट्टला ने उँगली पुजारी को दिखाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया।
"तो दामोदर महाराज को नंगा करके आगे-पीछे बाँधकर मुंह में कपड़े लूंसकर उनके कपड़ों को पहिन करके जानेवाली तुम ही थीं?" पुजारी ने पूछा।
"तो सारी बातें आप लोगों को पता चल ही गयी ?"
"दो तीन पखवारों से तलकाई में जाने क्या-क्या समाचार फैले! क्षणक्षण में विचित्र-विचित्र समाचार फैल रहे थे। नगरजन तो भारी भ्रम में पड़ गये थे।" पुजारी बोला।
"अब आगे आप लोग सन्निधान के कृपापूर्ण आश्रय में सुखपूर्वक रह सकते हैं।" पुनीसमय्या ने कहा।
"भगवान् की सन्निधि में हमें तो सदा ही शक्ति है। परन्तु नगरवासियों का भी ध्यान हो।" पुजारी ने कहा।
"क्यों, चोलों के राज में लोगों को सुख नहीं था?" "उन राजा के बारे में तो हम कुछ नहीं जानते। एक-दो बार आये थे। व्यवहार
298 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन