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कभी-कभी अपने मूल चित्र से भिन्न कोई छोटे-मोटे संशोधन परिवर्तन हुए हों और वे परिवर्तन भूल योजना के पूरक होकर कलासौन्दर्य को बढ़ानेवाले हों तो उन्हें चित्र में सम्मिलित कर लेने का काम भी करता था। इस प्रातः कालीन भ्रमण के बाद खुद अपने हिस्से में लग ग१३ ।
आज कार्य-वीक्षण समाप्त कर अपनी जगह आकर काम में न लगा, कुछ चिन्तामग्न-सा हो बैठा रहा। इतने में कुँवर बिट्टियण्णा अपने अन्य कार्यों से छुट्टी पाकर, मन्दिर निर्माण कार्य की समीक्षा करता हुआ शिल्पी के स्थान पर आया। शिल्पी को चिन्तामग्न बैठे देखकर यह चकित हो गया। कार्यारम्भ किये हुए कई पखकारे बीत गये थे; उसने कभी शिल्पी को इस तरह जड़ होकर बैठे नहीं देखा था। ऐसा क्यों ? वह चाहता था कि उससे पूछ ले। फिर पता नहीं क्या सोचकर बिना पूछे ही चला गया वहाँ से ।
नियमित समय पर भोजन की घण्टी बजी। घण्टी की ध्वनि ने शिल्पी की चिन्तासमाधि को तोड़ा। शिल्पी वहाँ से उठा और अपने पड़ाव की ओर चला । अपने आपसे कहने लगा मैं आज क्यों इस तरह मूर्ख बन बैठा ? ऐसे में यदि पट्टमहादेवी आकर देख गयी होतीं तो मेरी क्या दशा होती ! उस बड़े सवेरे मुँह अँधेरे के दुष्ट स्वप्न ने इतना गड़बड़ किया। मन से सर्वथा दूर वह व्यक्ति आज स्वप्न में क्यों आया? इस दुरन्त स्थिति से पार पाने और जीवन के प्रति कडुआहट त्यागने के उद्देश्य से मैंने गृह त्याग किया त्रिषु संवत्सर में अब पन्द्रह वर्ष बीत चुके। इतने वर्षों के बाद अब क्यों इस तरह का स्वप्न ? यही सब सोचता हुआ वह अपने पड़ाव पर पहुँचा। भोजन तैयार था। जल्दी ही उलटा-सीधा निगलकर फिर अपने कार्यस्थान पर नियत समय पर पहुँच गया।
मध्याह्न के बाद जो कार्य करना था उसे आरम्भ भी किया परन्तु ध्यान बँटा गया, एकाग्रता न साध सका। हाथ उल्टा-सीधा चलने लगा। समय बीतता गया पर काम कुछ न हुआ । सूर्यास्त की ओर उसका ध्यान गया तो उसे याद आया कि आज दिनभर पट्टमहादेवी इस तरफ नहीं आयीं। या सुबह ही आकर चली गयीं ? फिर सेवक की ओर देख उससे पूछा, "सन्निधान आज क्यों नहीं आय ?"
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'यह सब हमें क्या मालूम, शिल्पीजी ?"
"तो आज राजमहल से कोई नहीं आया ?"
"क्यों, दण्डनायकजी- छोटे स्वामी आये थे न 1 आपने उन्हें देखा नहीं ?"
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"नहीं" कहकर वहाँ से वह निकल पड़ा। अपने निवास की ओर जाते हुए
कुछ दूर जाने के बाद वहीं रुक गया, सोचने लगा- प्रतिदिन दो-चार घण्टे यहाँ बितानेवाली पट्टमहादेवी जी आज क्यों नहीं आय ? दण्डनायकजी जो आये, मुझसे यात किये बिना क्यों चले गये ? इस तरह की चिन्ता अगर मन में बस गयी तो काम
274 पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन