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है न? वह बात शिल्पियों की एकता को तोड़ भी सकती है।"
"मानव-स्वभाव ही विचित्र है। यह विचित्रता जब तक रहेगी, तब तक सभी कुछ सम्भव है। तो एक काम करेंगे। नया शिल्पी अपना रेखांकन ले ही आएगा। सबको एकत्रित कर पूर्ण तटस्थता से उनको अपने-अपने विचार व्यक्त करने के लिए एक अवसर और देने में, इस सन्दर्भ का उपयोग किया जा सकता है।"
"एक तरह से यह उचित ही है।"
तभी रेविमय्या ने आकर प्रणाम किया। कहा, ''एक आवश्यक काम पर विचार-विनिमय के लिए सन्निधान ने मन्त्रणा-सभा बुलायी है। अरसजी और पट्टमहादेवीजी भी उस सभा में उपस्थित रहें. यहो सन्निधान की इच्छा है।"
शान्तलदेवी ने पुछा-"कब?" "अभी। सब लोग आ गये हैं: केवल गंगराजजी को आना है।" "क्या बात है?
"वहीं पता चलेगा। अब समय नहीं है। यही सन्निधान का आदेश है।" रेविमय्या बोला।
___ शान्तलदेवी जानती थी कि वह कुछ कहेगा नहीं। तुरन्त उदयादित्य के साथ मन्त्रणाशाला की ओर चली गयीं।
शान्तलदेवी के वहाँ पहुँचते-पहुँचते गंगराज भी आ गये। पट्टमहादेवी के पहुँचते ही महाराज :: अन्य भी उठवार किया। प्रत्यभिकन बाद पट्टमहादेवी अपने आसन पर बैठीं। उदयादित्य भी बैठ गये।
बिट्टिदेव ने कहा, "इस तात्कालिक मन्त्रणा सभा को बुलवाने का उद्देश्य माचण दण्डनाथ सभा के समक्ष प्रस्तुत करेंगे।"
माचण दण्डनाथ ने विस्तार के साथ समझाया-"ललकाडु प्रदेश के आसपास की कन्नड़ जनता को चोल-प्रतिनिधि आदियम ने सताना प्रारम्भ कर दिया है। और श्रीरंग के आचार्य को पोयसलों ने आश्रय दिया, इससे चोल राजा बहत चिढ़ गये हैं। पोय्सलों के विनाश के लिए उन्होंने आदियम को आदेश दिया है। उनके साथ चोल सामन्त नरसिंहवर्म और दामोदर दोनों ने सम्मिलित होकर हमारे राज्य पर आक्रमण करने की तैयारी की है। उनके आगे बढ़ने से पहले हम ही आक्रमण कर दें तो अच्छा है--यही सूचना मिली है। क्या और कैसे आचरण करना, किस-किस को वहाँ जाना, और राज्य के अन्य भागों में किस तरह से सावधान रहने की व्यवस्था करना, इन सब कार्यक्रमों के निरूपण के लिए यह सभा निर्णय करे। कल से ही आगे बढ़ना होगा। कल मुहूर्त भी शुभ है। मैंने राजमहल के ज्योतिषीजी से पता लगा लिया है।"
प्रधान गंगराज ने कहा, "अबकी बार सेना-नायकत्व मैं स्वयं करूंगा। मेरे
228 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन