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अभी बात समाप्त भी नहीं हो पायी थी कि इतने में अपने प्रेम के 'परिणाम' 'बल्लू' को गोद में लिये चट्टला और मायण ने अन्दर आकर प्रणाम किया।
इसके बाद चट्टला पट्टमहादेवी के पास गयी। उनके आसन के सामने पीछे राजसो आस्तरण पर बच्चे को लिटाया और कहा, "हम दोनों ने सन्निधान के साथ रणभूमि में जाने का निश्चय किया है। इस अवसर पर हमारे पास पहले जो सन्देश आया और जो उस पर विचार-विनिमय हुआ- यह सब जान गयी हूँ। मैं 'बल्लू' के जन्म के लिए निमित्त मात्र हूँ। पट्टमहादेवीजी, यह सजमहल हमारे जीवन में व्याप्त विष को दूर करे, उसमें प्रेम उत्पन्न करनेवाली प्रेरक शक्तियाँ हैं । माँ होकर मैं जितना प्रेम दे सकती हूँ उससे हजार गुना अधिक प्रेम 'बल्लू' को आपसे मिलेगा। उसका यह भाग्य ही उसके भावी के लिए नान्दी है।"
विशेष बातचीत के लिए अवसर न देकर बल्लू पट्टमहादेवी के अन्त:पुर का निवासी हो गया। चट्टला-मायण सेना के साथ प्रस्थान के लिए तैयारी करने की आज्ञा लेकर चले गये। सेविका की गोद में बल्लू था, उसे एक चुम्मा देकर चट्टला चल पड़ी थी।
पूर्व निश्चित मुहूर्त में समस्त राज-गौरवों के समेत पंचमहावाद्य निनादित हुए। वाद्य-ध्वनि दिदिगन्त में व्याप्त हो गयी। पोयमलेश्वर की वियज-यात्रा प्रारम्भ हुई। धीरे-धीरे वाद्य-ध्वनि क्षीण होती गयी। अन्त में सारी वेलापुरी में स्तब्धता छा गयी। राजधानी में वृद्ध और बच्चों को छोड़कर अधिकांश युवकों को विजय-यात्रा के निमित्त महाराज के साथ जाने के कारण राजधानी में चहलपहल ही न रही। इसी कारण उस दिन मन्दिर का भी कार्य रोक दिया गया था।
उस दिन शाम को गोधूलि के वक्त पट्टमहादेवी ने दासोज और गंगाचारी को राजमहल में बुलवा लिया। उस रेखा-चित्रों के पुलिन्दे को उनके हाथ में देकर कहा. "इसके चित्रों का सूक्ष्म अवलोकन-परीक्षण करके अपना स्पष्ट अभिमत दें।"
उसे खोलकर पहले ही पृष्ठ को देखते हुए दासोज ने पूछा, "इसका आलेखक कौन है?"
रचयिता के नाम से रचना का मोल-तोल होता है?
"ऐसा नहीं, हमने जिसे देखा-सुना नहीं, ऐसी कल्पना इसमें लक्षित होती है; इसलिए कौतूहल हुआ--पूछा।"
"सबको सावधानी से देखकर समग्र रचना पर अभिमत दीजिए। मैं थोड़ी देर के बाद यहाँ आऊँगी।" कहकर उत्तर की प्रतीक्षा के बिना ही शाम्तलदेवी अन्दर चली गयीं।
उधर बिट्टियण्णा अबकी बार भी युद्ध में न ले जाने के कारण मुँह फुलाकर
236 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन