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"हाँ हाँ, मारो काटी यहां जाननेवाले इसे समझे भी कैसे ? श्रीश्री शंकराचार्य ने बत्तीस की उम्र में मोक्ष सिद्ध पायो थी।" चट्टला ने कहा । " वे तो जन्म से संन्यासी रहे । तुम लोगों की तरह गृहस्थ नहीं। "
"तो क्या गृहस्थों के लिए मोक्ष नहीं चाहिए? क्या वह केवल संन्यासियों ही के लिए सुरक्षित हैं ?"
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'चाहे कोई भी प्राप्त कर सकते हैं। परन्तु अभी आपके लिए ठीक नहीं।" आदियम ने कहा ।
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'इसका तात्पर्य ?" चट्टला ने पूछा 1
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'कुछ नहीं, तुम लोग उस बिट्टिगा के गुप्तचर हो। यह सब नाटक हमारे पास नहीं चलेगा। हम सब देख रहे हैं। इस नगर में आनेवाले नये लोगों पर हम पैनी दृष्टि रखते हैं। दामोदर ! इन दोनों को हमारी राजधर्मशाला में रखकर इन पर निगरानी रखना। ये सच्चे यात्री हैं या नहीं - इसका जब तक पता न लगे तब तक सतर्क रहना । हमारे प्रभु की आज्ञा है कि सबका परीक्षण खुद करें और आगे ढ़ें। इसीलिए हम स्वयं मन्दिर में आये। सामान्यतः हम मन्दिर में नहीं आया करते। हम जब आएँगे तब दूसरों के लिए प्रवेश नहीं समझें। हमें ज्ञात है कि बिट्टगा के गुप्तचर दल में एक स्त्री भी है। सुना है कि उसने दो बार उस राजा के प्राण बचाये हैं। तुम अगर वही हो तो समझो कि तुम्हारा अन्तकाल समीप है। कम-से-कम अब तो मेरी बात स्पष्ट हो गयी ?" आदियम ने कहा। "हमें यह धर्मशाला और वह धर्मशाला- इसमें क्या अन्तर पड़ता है ? वहीं रहेंगे । और आपके गुप्त उप्तचर तो हम कुछ समझते नहीं। हम जैसे यात्रार्थियों को कष्ट देंगे तो भगवान् का क्रोध तुम पर अवश्य उतरेगा, इतना तो स्पष्ट कह सकती हूँ | सच हैं कि हमारी आयु मोक्ष की नहीं। परन्तु हम किसके लिए जिएँ ? जैसा कहा आपने हमें सन्तान नहीं है। ईश्वर हमें सन्तान दे, या फिर मोक्ष। उसी की माँग करते हुए हम यात्रा पर निकले हैं।" धीरज के साथ चट्टला ने कहा ।
"देखो माई, हमें तो शंका पैदा हो गयी है। यह शंका जब तक दूर न हो तब तक तुम लोगों की मुक्ति नहीं। यदि हमारी शंका ठीक निकली तो हम हीं तुम लोगों को मोक्ष दे देंगे। नहीं तो इस बन्धन से मोक्ष देंगे। हाँ, अब चलिए।" आदियम ने कहा ।
"पुजारीजी हमें प्रसाद दीजिए। मनोन्मनी देवी हमारे अन्तरंग को समझती हैं । वैद्येश्वर महादेव उसकी चिकित्सा करेंगे, यही समझकर पूजा करने यहाँ आये तो हमें यहाँ इस पाप का बन्धन ही प्रसाद के रूप में मिला ? उनकी इच्छा। जो होता तो अच्छे के लिए ऐसा हमारा विश्वास है। इससे क्या ? भूखों रखकर
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266 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन
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