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'राजमहल में पट्टमहादेवी का सन्दर्शन करने। "
" अप... "
।।
"वहीं मालूम होगा। आइए।" कहकर उदयादित्य कदम बढ़ाने लगे। शिल्पी धीरे से उनके साथ चार कदम आगे बढ़कर शंकित होकर खड़ा हो गया। शिल्पी पीछे आ रहा होगा यही सोचकर उदयादित्य काफी दूर तक आगे जो ढ़ गये थे, पीछे मुड़कर देखा। शिल्पी वहीं खड़ा था। वह फिर लौटकर उसके पास आये ।
"क्यों शंका कर रहे हैं? आपको कोई कष्ट न होगा; भरोसा रखें। आइए।" उदयादित्य ने उसे प्रोत्साहित किया।
"राजमहल में मुझे क्या काम हैं ? मुझे काम दिलवाने का अधिकार आपको हो तो स्थपत्ति से कहिए। चाहें तो मैं ही उससे पूछ लूँगा। राजमहल - पट्टमहादेवीयह सब हमसे बहुत दूर !...
".
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" राजमहलवाले भी आप जैसे मनुष्य ही हैं। वे कोई भयावह जीव-जन्तु नहीं। आइए । "
" पट्टमहादेवी से न मिलने पर मुझे क्या काम नहीं मिलेगा ?"
"एक दूसरे के साथ मिलना आवश्यक है। आपको पोय्सलों का राजमहल, सन्निधान और पट्टमहादेवी -- इनका शायद परिचय नहीं मालूम पड़ता है।"
'थोड़ा-बहुत जानता हूँ। यादवपुरी में उनके बारे में लोगों को प्रशंसा करते सुना है। अन्यत्र भी सुना है। इतने बड़े लोगों के पास हम जैसे बहुत छोटों का क्या काम है ? मुझे स्वयं अपने पर ही उदासीनता है। इस वेश में उन्हें देखने में कोई गाम्भीर्य नहीं। मुझे राजमहल के सन्दर्शन से छुड़ाकर आप ही स्वपति से कहकर काम दिलवा दें। आपके स्थपति को मेरा काम पसन्द आए तो मैं यहाँ रहूँगा। नहीं तो मैं यहाँ से चला जाऊँगा ।"
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" पट्टमहादेवीजी ने अगर आपको देखा न होता तो शायद ऐसा हो सकता था। अब उन्होंने आपको इसी वेश में देख लिया है। उनके आदेशानुसार आपको मनाकर अन्दर ले जाने के लिए ही मैं यहाँ आया हूँ।"
"छि:, कितनी बड़ी बात है। मुझ जैसे को मनाने जैसी कौन सी बात है यहाँ ? मुझे चलना ही होगा ?"
"आज तक पट्टमहादेवी के बुलावे का किसी ने इनकार नहीं किया। सभी की यह मान्यता है कि उनका दर्शन पाना सौभाग्य की बात है। ऐसी हालत में संकोच करने का कोई कारण नहीं।"
" संकोच करना ही चाहिए। जिसे जहाँ रहना चाहिए, उसे वहीं रहना होगा । इस दुनिया में मुझे अब किसी से कोई अपेक्षा नहीं। इसलिए जो हो वही
214 पट्टमहादेवी शासला भाग तीन