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सौम्यनायकी के मन्दिर के उन रेखाचित्रों को ले आने के लिए उदयादित्य अरस से कहो।" शान्तलदेवी ने कहा। रेविमय्या चला गया।
''हमने अभी एक कार्य कर लिया है। जो प्रसिद्ध शिल्पी यहाँ आये हैं, उनसे उन-उनकी कल्पना के अनुसार रेखाचित्र तैयार करने की प्रार्थना की और सभी रेखाचित्रों के तैयार होने के बाद उनमें से जो नयी रीति का अँचा, उसे स्वीकार कर लिया है। उस रेखाचित्र के निर्मापक, ओडेयगिरि के शिल्पी हरीश को हमने स्थपित बनाया है। आपको उनकी देखरेख में बार करना होगा : स्त्रीकार गेम?'' शान्तलदेवी ने कहा।
"मैं कौन बड़ा हूँ? मैं किसी के भी अधीन काम कर सकता हूँ। मेरी एक इच्छा है। मैं जो भी कार्य करूँगा उसका चित्र मैं पहले तैयार करूँगा। उसमें कुछ परिवर्तन सुझावेंगे तो उसे पुनः चित्रित करूँगा। एक बार चित्र स्वीकृत हो जाय, उसके बाद कोई सलाह किसी की भी नहीं होनी चाहिए। पत्थर हाथ में लेने के बाद कल्पना में कोई परिवर्तन नहीं होगा।"
"इसके पहले आपने कहीं अन्यत्र काम किया है?"
"हाँ, किया है। बहुत वर्षों के बाद अभी हाल में कोई काम किया है तो वह • दोड्डगढुवल्ली में"।
"तो क्या आप यादवपुरी आये थे?" "हाँ, सन्निधान से किसने कहा?"
"श्रीरंग से जो आचार्य पधारे हुए हैं उन्हीं श्रीश्री रामानुज आचार्य ने बताया था।"
"उनका दर्शन हुआ था।" "उन्होंने सब कुछ ज्यों-का-त्यों बताया।" "छिपकर भागनेवाला चोर बताया होगा।"
"स्वेच्छया विहार चाहनेवाला कलाकार पंछी उड़ गया। उनकी सेवा प्राप्त करने का भाग्य हमें भगवान् ने नहीं दिया, कहकर बहुत पछताये। उन्हें मालूम हो चुका था कि आप दुःखी जीव हैं। उनका विचार था कि उस दुःख भार को कम करें।"
___ "स्वयं भगवान ही उसे कम नहीं कर सकते। फिर भी पूज्य व्यक्ति की अनुकम्पा भी आशीर्वाद हो है न?"
"ऐसे सान्निध्य को छोड़कर आप गये ही क्यों?"
"मुझे अपने विषय में किसी से कहने की इच्छा नहीं। उसे जानने का प्रयत्न करने का भान हुआ। इसीलिए वहाँ से खिसक गया। यह मेरा स्वभाव है। यहाँ भी यदि ऐसा ही हुआ तो..."
पष्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 27