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सोची है। अपने विषय में निर्णय करने का अधिकार उनको है। पट्टमहादेवी होने के नाते जनता के विषय में मेरी जिम्मेदारी उतनी अधिक न होने पर भी थोड़ीबहुत तो है ही। इसीलिए मेरा यह अटल निर्णय है। मेरे इस निर्णय के कारण अनेक अप्रबुद्ध जैन मतावलम्बियों को सहारा मिल जाएगा। उनका विश्वास ज्यों.. का-त्यों बना रहेगा। सन्निधान के मतान्तर को स्वीकार करने पर भी पट्टमहादेवी ने मतान्ता नहीं स्वीकार किया। तात्पर्य यह कि लोग समझेंगे कि जैनमत में सत्त्व है। मेरे इस निर्णय के लिए तीन कारण हैं। एक, मेरा विश्वास अटल है। वह सार्वकालिक है। दो, अब तक इस मत की अनुयायिनी होते हुए भी सभी मतों को सहिष्णुता से देखने की मनोवृत्ति को मैंने अपना लिया है। मतान्तरित होने पर भी वह सहिष्णुता इसी तरह बनी रहेगी. इसपर मेरा विश्वास नहीं। तीन, सन्निधान के मतान्तरण से जैनियों में उत्पन्न हो सकनेवाली धार्मिक शंका, मेरे निर्णय के कारण, दूर होगी और उससे राष्ट्रहित सधेगा। मेरे इस निर्णय से राष्ट्र, जिन-धर्म और आत्मोन्नति के लिए शक्ति प्राप्त होगी। मेरा यह निर्णय किसी के लिए, किसी भी कारण से परिवर्तित होनेवाला नहीं।"
"तो हमने यहाँ आकर आपके सुखी दाम्पत्य जीवन में बाधा डाल दी। इन दो दिनों में हमें जो प्रोत्साहन मिला उससे हमने सोचा था कि एक महान् कार्य को हम साध सकेंगे। अब इस दाम्पत्य जीवन में विरसता पैदा करके भगवान् का कार्य कैसे साध सकेंगे? हम स्वयं विमुख हो जाएँ, यही उत्तम है। हमारे कारण किसी तरह की सन्दिग्धता या विरसता उत्पन्न नहीं होनी चाहिए। पोय्सल राज्य में कुछ काल तक रहने का हमारा विचार था। अब इस विचार को बदलना पड़ेगा।"
"विरस कहाँ ? मेरा यह अटल निर्णय विरसता को दूर करने ही के लिए है। एक बात का स्पष्टीकरण अब मुझे करना है। श्रीश्री जी केशव के भक्त हैं। राजकुमारी की बीमारी का पता किसी को नहीं लग सका था। बड़े-बड़े पण्डित चिकित्सा कर-करके हार चुके थे। मैंने भी आयुर्वेद का अध्ययन किया है। उन लोगों ने जो चिकित्सा की उस सबको मैं जानती हूँ। ऐसे मौके पर श्रीचरण यहाँ पधारे; जीवदान देकर राजमहल के प्रकाश को बचाया। वास्तव में यह घटना किसी को भी आकर्षित कर सकती है। अपनी साधना से आपने जो पारलौकिक सिद्धि प्राप्त की है उसके सामने सिर झुकाना ही पड़ेगा। परन्तु, ऐसी ही एक
और घटना घटी है। उसी दिन हमारे गुल्म-नायक राजकुमारी के स्वास्थ्य की कामना से बाहुबली स्वामी की मनौती लेकर बाहुबली को उसे समर्पित कर स्वामी का पवित्र प्रसाद ले आया और हमें दिया है। वह भी अविश्वसनीय विषय नहीं। इन दोनों में सत्य कौन है-इस पर शंका करेंगे तो मन कलुषित हो जाएगा।
198 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन