________________
"ऐसी स्त्रियों की आत्मोन्नति की प्राप्ति की सीढ़ी पति ही है, यही हुआ न?" शान्तलदेवी बोलीं ।
"हाँ, वह तो स्वयंसिद्ध बात है।" आचार्य ने कहा। "उस सीढ़ी के लिए सुभह आधार न हो और
गिरना ?" शान्तलदेवी ने कुछ कड़ी आवाज में कहा। बम्मलदेवी को यह व्यंग्य
सा लगा।
"हमें उनके बारे में पूर्ण विश्वास है। यह तो उन लोगों की बात हुई जिन्हें पति में विश्वास नहीं।" खम्मलदेवी ने कह दिया।
11
'ऐसा हो तो आप लोग अब तक जैन मतावलम्बिनी क्यों नहीं बनीं ? इस क्षण तक भी आप लोग शैव ही हैं न?" शान्तलदेवी ने सवाल किया।
"हैं?" आचार्य ने प्रश्न किया।
"हाँ छोटी दोनों रानियां शैव हैं। मेरे पिताजी शैव और माताजी जिनाराधिका । भिन्नमतीय होने पर भी उनका दाम्पत्य जीवन चकित करनेवाला है। पूजा-अर्चा आत्मोन्नति के लिए है। वह वैयक्तिक स्वातन्त्र्य है । परन्तु दाम्पत्य का सम्बन्ध लौकिक है। उसमें सरसता उत्पन्न होना हो तो आपस में विश्वास के साथ परस्पर व्यवहार होना चाहिए। इस तरह साध्य है, इसके लिए वे प्रत्यक्ष साक्षी हैं। उन दोनों में मुझे अपने जैसा परिवर्तित कर लेने का हठ होता तो जीवन नरक बन जाता। उन्होंने एक-दूसरे को अच्छी तरह समझा है। उनके जीवन की रीति एक आदर्श है। यहाँ एकमुख अनुवर्तन नहीं। उनके जीवन में दोनों ओर से अनुवर्तन है। अन्धविश्वास की तरह अन्धानुवर्तन कभी भी पेचीदगी पैदा कर सकता है। इसलिए अनुवर्तन पर जोर दें तो वह कभी-न-कभी जीवन को नुकसान ही पहुँचाएगा।" शान्तलदेवी ने कहा ।
"तो महाराज यदि मतान्तर को स्वीकार करेंगे तो पट्टमहादेवी इस विषय में उनकी अनुवर्तिनी नहीं होंगी, ऐसा ही समझना चाहिए ?" आचार्य ने प्रश्न किया।
"हाँ, निश्चित रूप से ।" शान्तलदेवी ने दृढ़ता से उत्तर दिया।
"यही निर्णय है ? सोच सकती हैं न?" धीरे से आचार्य ने कहा ।
L
'यह निश्चित है। "
"यदि जनता को मालूम हो जाय कि राजदम्पती में धर्माबलम्बन के विषय में
भिन्न मत है, जो उसका उन पर क्या प्रभाव होगा ? इसपर पट्टमहादेवीजी विचार नहीं करेंगी ?" आचार्य ने प्रश्न किया।
"
'जनता की जिम्मेदारी प्रधानतया सन्निधान की है। उन्होंने इस सम्बन्ध में बिना सोचे- विचारे जल्दी में किसी प्रसंग के प्रभाव में पड़कर मतान्तर की बात
महादेवी शान्तला भाग हीन 197