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शाम की आरती के समय तक शान्तलदेवी सबकी राय जान चुकी थीं। आगत सभी अतिथियों के चले जाने पर उन्होंने 'सन्निधान को अपने मन्तव्य से सूचित किया। दूसरे ही दिन धरणेन्द्र के पास बुलाया गया। राजमहल के पुरोहितजी ने जन्मपत्री मिलायी। मुहूर्त निश्चित किया गया। शताब्दी-महोत्सव समारम्भ के लिए बने उस विशाल शामियाने में ही कुमार बिट्टियण्णा और सचिव नागदेव की पुत्री सुष्बला का विवाह सम्पन्न हो गया। हेगड़े मासिंगय्या और माचिकब्बे ने सुब्बला का धारापूर्वक कन्यादान स्वीकार किया, मिट्टियण्णा के माँबाप की तरफ से। नागदेव के स्वर्गवास और धरणेन्द्र के अविवाहित होने के कारण खुद महाराज और पट्टमहादेवी ने कन्यादान दिया। मुहर्त का समय बहुत निकट होने से दूर-दूर के लोगों तक आमन्त्रण न पहुँचा सकने के कारण बाहर से सभी लोग नहीं आ सके थे। फिर भी हजारों जन इकट्ठे हुए थे, जिन्होंने इस लाड़ले दम्पती को आशीर्वाद दिया। इसी अवसर पर डाकरस और एचियक्का के साथ बातचीत करके मुद्दला का विवाह मरियाने के साथ कर देने का भी निर्णय किया गया। मरियाने की जन्मपत्री के अनुसार, उसको गुरुबल इस वर्ष में न होने के कारण आनेवाले मन्मथ संवत्सर में मुहूर्त का निश्चय किया गया।
इस शुभ कार्य के सम्पन्न होने के पश्चात् राजदम्पती ने अपने बच्चों समेत यादवपुरी की ओर प्रस्थान किया। बिट्टियण्णा हेगड़े दम्पती के साथ वेलापुरी की
ओर चला गया। यहाँ उसका सैनिक शिक्षण और श्रीपाल वैद्यजी से साहित्य, न्यायशास्त्र आदि का शिक्षण यथावत् चलने लगा।
महामातृश्री को जो वचन दिया था उसका पालन कर बिट्टिदेव और शान्तलदेवी के मन को बहुत तृप्ति हुई।
पंचि दण्डनाथ और अम्मलदेवी-राजलदेवी अब की बार राजदम्पती के साथ यादवपुरी नहीं गये। वे आसन्दी प्रदेश की तरफ बढ़ गये। सम्पूर्ण पोयसल सेना का पाँचवाँ हिस्सा मंचि दण्डनाथ के साथ रवाना हो गया था। पाँच हिस्सों में से दो हिस्सा सिंगिमय्या और पुनीसमय्या अपने-अपने साथ यादवपुरी ले गये। शेष दो हिस्सों में से एक प्रधान गंगराज और माचण दण्डनाथ के अधीन दोरसमुद्र में और एक डाकरस के अधीन वेलापुरी में रहा।
उदयादित्य भी अपनी पत्नी और पुत्र के साथ बेलापुरी चले गये।
यादवपुरी पहुँचने के बाद थोड़े दिनों में खबर मिली कि आलुप अयसिंग की सेना को हलचल जोर पकड़ रही है। डाकरस दण्डनाथ के नेतृत्व में थोड़ी सेना वेलापुरी से सोपा प्रदेश की ओर चल चुकी थी। वहाँ से विशेष सूचना न मिलने पर भी पुनीसमय्या, शान्तलदेवी, सिंगिमय्या के साथ विचारविनिमय करके
80 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन