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हमसे मिल गये हैं यह बात अब उनको भी मालूम हो चुकी है। अकारण ही चालुक्य राजा ने हम पर सन्देह करके हमें विरोधी समझ लिया है। जग्गदेव से हम पर हमला करवाकर वे हार खा चुके हैं। आज हम चारों ओर से शत्रुओं से घिरे हुए हैं। एक तरफ चोल प्रतिनिधि आदियम, दूसरी ओर उच्चंगी के पाण्ड्य, नोलम्ब, कदम्ब, सान्तर और चालुक्य-यों चारों ओर शत्रुओं से घिरे हुए हैं हम। ऐसे मौके पर यह विवाह हो तो यह वास्तव में चालुक्यों के साथ युद्ध में परिणत होगा। उनसे युद्ध करने के लिए छेड़खानी करना ठीक है? यही हमें सोचना है।" मारसिंगय्या ने कहा।
सभा में मौन छा गया। कुछ क्षण बीतने के बाद मायण दण्डनाथ ने कहा, "हेग्गड़ेजी की बात विचारणीय है। अभी अनेक उलझनों से घिरे हुए हैं हम। इसलिए उनको सुलझाने की ओर ध्यान देना यक्त है। उलझनों को और बढ़ने देने में बुद्धिमानी नहीं है-यह मेरी राय है।"
"तो क्या हमें चालुक्यों से डर जाना होगा?" उदयादित्य ने कहा। "डरने के लिए हम चूड़ियाँ पहने नहीं बैठे हैं।" सिंगिमय्या ने कहा।
"चूड़ियाँ पहननेवाली पोयसल महिलाएँ भी तलवार पकड़ने से पीछे न हटेंगी।" शान्सलदेवी ने कहा।
"तो...?" गंगराब ने बीच में सवाल किया।
"पोय्सल कभी कायर नहीं रहे हैं, न होंगे। कितना भी बड़ा राज्य हम पर हमला करे हम डरनेवाले नहीं। अन्तिम साँस तक युद्ध करेंगे, रक्त की आखिरी बूंद तक करते रहेंगे। इसलिए कायरों की तरह डरकर हमें अपना कार्य नहीं छोड़ देना चाहिए। इन राजकुमारियों से विवाह करने पर यदि चालुक्य विक्रम हमें आक्रमण की धमकी दें तो हमें उनसे कहना होगा---'यह विवाह तो होगा ही-यही आपकी धमकी का जवाब है। आओ, देखें, आप क्या करते हैं।' शायद आप लोगों को मालूम नहीं हुआ होगा कि चालुक्यों के गुण्डे लोग क्या दुष्प्रचार कर रहे हैं। कहते फिर रहे हैं कि आपके सन्निधान इन दोनों राजकुमारियों के साथ वेश्याओं का-सा व्यवहार कर रहे हैं। शीलवती कुमारियों के बारे में इस तरह की कहनेवाले की जीभ काट डालना चाहिए। स्त्री अपने शोल के महत्व को समझती है। इस विवाह के होने पर अन्य राष्ट्र क्या करेंगे-ऐसा विचार कर हमें डरने की जस्मरत नहीं। चालुक्य विक्रम ने चन्दलदेवी से विवाह किया तो मालवों ने उन पर हमला किया; तब उन्हें हरानेयाले कौन थे? उनकी रक्षा किसने की? रणरंग में उनका अपहरण होने से उन्हें किसने बचाया? चालुक्य पिरिपरसीजी के शील और गौरव की रक्षा करके, उन्हें पवित्र बनाये रखकर किसने लौटाया? हमारे सन्निधान के जन्मदाता एरेयंग महाप्रभु ने। उन्हीं का खून हम पोयसलों की धमनियों में बह रहा है। इन सब
94 :: पट्टपहादेवी शान्तला : भाग तीन