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अष्टपहिषियों को भी शायद पा जावें-यही सोचकर जो विश्राम और शयन-कक्ष हैं. उनके साथ कुछ और कक्ष भी बन जाएँ तो गलत न होगा। महिषियों की संख्या के न बढ़ने पर भी अतिथियों के लिए उसका उपयोग हो सकेगा-यही सोचकर उन्होंने इस विस्तरण की योजना बनायी थी। बिट्टिदेव के लौटने के पहले ही इस कार्य को पूरा करा देने के इरादे से अधिक लोगों को लगाकर कार्य कराने लगी थीं। उदयादित्य की निगरानी में यह काम जल्दी पूरा भी हो गया और समर्पक ढंग से भी हुआ।
नव-विस्तृत आनर्तशाला के अन्दर का भाग किस रंग से रँगा जाय, इस बारे में उदयादित्य ने बम प्रम किया दोन्तादे मा, "बलमो को गानासा रंग ठीक लगेगा?"
उदयादित्य ने जवाब दिया, "साँवला रंग मन और आँखों-दोनों के लिए हितकर होगा।
"कला यदि काम की ओर झुके तो साँवला रंग आवश्यक होता है। कला को अगर भगवदर्पित, पारमार्थिक दृष्टि का विकास करनेवाली, और मन को शान्ति प्रदान करनेवाली होना हो तो हल्का नारंगी रंग मुझे अच्छा लगता है। यह रंग संन्यासियों के काषाय के करीब-करीब होना चाहिए। वह प्रशान्त भाव को सूचित करता है।" शान्तला ने कहा।।
"सन्निधान ने विवाह कर लिया तो पट्टमहादेवीजी का मन संन्यास की ओर झुक गया. क्यों?"
"तुम्हारा प्रश्न असाधु नहीं. उदय । मगर अतृप्त मन और असमाधान की स्थिति में संन्यास की भावना उत्पन्न होने पर वह गलत होती है। दाम्पत्य जीवन से मुझे पूर्ण तृप्ति मिल चुकी है। उस तृप्ति की पृष्ठभूमि में संन्यास की प्रशासता गलत नहीं होगी न?"
"तो सन्निधान के यहाँ आने पर..."
"किस तरह का व्यवहार करना होगा सो मैं जानती हैं। उन्हें भी मालूम है। आप लोगों में से किसी को भी भय की आवश्यकता नहीं। तुम ही ने तो विषयान्तर कर दिया।"
"मेरे लिए तो उत्साह भरनेवाला सांवला रंग ही अच्छा लगता है।"
"कला शान्ति और तृप्ति देनेवाली है, इसलिए जो रंग मैंने बताया वह रंग रहे। अगर यह ठीक न लगे तो बदल सकते हैं।"
"रंगस्थल की भित्तियाँ ?"
"उनके लिए कोई भी रंग चुन लें, सब बराबर। वह सो सदा परदे से की रहेंगी न?"
96 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन