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"हम सबकी भलाई हो यही आपका ध्येय है-इसमें कभी मेरा अविश्वास नहीं रहा है। परन्तु आपकी सलाह आपके उस लक्ष्य को नहीं साध सकती, यही मेस आपसे निवेदन है।"
बात वहीं रुक गयी। __ सबके मन चिन्ताग्रस्त हो उठे। राजमहल में कोई हलचल नहीं दिख रही थी। सारे कार्य यन्त्रवत् चलने लगे थे; सब लोग उदासी में दिन गुजार रहे थे। सूर्योदय सूर्यास्त, सका गान अति निस्य-नैमित्तिक क्रियाएँ--सब कुछ जैसे यन्त्रवत् चल रहा था। सारी यादवपुरी ही चिन्ताग्रस्त हो उठी थी।
राजमहल के नौकर-चाकरों की दशा बहुत नाजुक बन गयी। यान्त्रिक रूप से चलनेवाले कार्यकलापों पर एक गम्भीर मौन छाया हुआ था।
यदि कोई कुछ कहे तो उसका और ही अर्थ न लगा लें, कहीं अवांछनीय परिस्थितियाँ उत्पन्न न हो जाएँ, इस भय से सबके सब गुमसम थे। केवल हाँ, नहीं, जो आज्ञा-इन शब्दों के अलावा कोई बात ही नहीं निकलती थी।
राजकुमारी की इस अस्वस्थता की वजह से चट्टलदेवी-मायण को पुत्रजन्म की खुशी भी अनुभूत नहीं हो सकी। यों यादवपुरी में सन्तोषजनक कार्य होने पर भी ये यथाक्रम सम्पन्न न होकर यान्त्रिक बनकर रह गये। सब मौन, निराडम्बर, चहलपहल से रिक्त । होनेवाले अनिवार्य कार्य होते रहे। घर-घर में राजकुमारी के स्वास्थ्य के लिए मनौतियाँ, पूजा-पाठ आदि चलते रहे।
इतना ही नहीं, राजकुमार विनयादित्य की वर्धन्ती का उत्सव भी निमित्त मात्र के लिए सम्पन्न हुआ था।
लोग जहाँ-तहाँ निस्तेज-से होकर इधर-उधर कोने में बैठे पड़े थे। किसी को कुछ सचेत करना होता तो व्यक्तिगत न होकर वह ध्वनिगत रीति से सचेत करना होता था। अर्थात् घण्टी बजानेवाले नौकरों के काम में विशेष बढ़ोतरी हुई। घण्टी बजानेवालों को विशेष रूप से सतर्क रहना होता था। सन्निधान कब किधर आएँगे जाएँगे, इसका पता ही किसी को नहीं होता था। वे जाएँ तो लोगों का जहां-तहाँ रहना नहीं हो पाता था। सन्निधान का सान्निध्य जब राजमहल में हो तब राजमहल में सबके व्यवहार की एक निर्दिष्ट रीति थी। इसके लिए लोगों को सजग रखना आवश्यक था। इसलिए राजमहल में कई स्थानों पर घण्टियाँ लटकायी गयी थीं। अकेले रेविमय्या का राजमहल में चलने-फिरने में प्रभुत्व होने से, दूसरा उपाय न देख लोगों को सजग रखने के लिए उसी ने यह व्यवस्था की थी। राजमहल के मौन को भेदनेवाला यही एक घण्टानाद था। काश! इस घण्टानाद की झंकार राजकुमारी की बीमारी को भगा देती तो कितना अच्छा होता! इससे भी कुछ नहीं हुआ।
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 105