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अस्वस्थता के कारण चिन्तित हैं। फिर भी दर्शन देने की स्वीकृति दी, यह उनकी उदारता है। इसलिए बिना संकोच जो कहना हो जल्दी कह दें।"
एम्बार ने गल्ला साफ करते हुए एक बार महाराज की ओर, फिर महारानी की ओर देखा, और ''हमारे गुरुवर्य ने यादव-कुलाम्बरधुमणि, मलेपपति..." आदि पोयसल राज-विरुदावली का बखान करना आरम्भ कर दिया।
तभी बिट्टिदेव ने सिर उठाकर उसकी ओर देखा और कहा, "आपके गुरुवर्य क्या चाहते हैं, इतना बता दें तो काफी है। बाकी यह सब अभी अप्रासंगिक है।" उनकी ध्वनि में उत्साह नहीं था।
एम्बार ने नागिदेवण्णा की ओर देखा। उन्होंने जल्दी बता देने का इशारा किया।
अचानक बात रुक जाने से अब फिर से उसे कैसे शुरू करें, एम्बार इसा सोच में पड़ गया। बात को यों टरका दें तो परिस्थिति बिगड़ जाएगी-यों सोचकर शान्सलदेवी ने ही पूछ लिया, "उन्हें यहाँ रहने के लिए स्थान चाहिए. है न?"
"हाँ, हाँ, पट्टमहादेवी जी...."
"उनके नियम, निष्ठा, पूजा-पाठ आदि निर्विघ्न चलें, इसके लिए सुरक्षित व्यवस्था चाहिए। है न?''
"हाँ, हाँ..."
"उन्हें और उनकी शिष्यमण्डली को उनके अनुष्ठान आदि निर्विघ्न चल सकने के लिए आर्थिक सहूलियतें चाहिए। है न?"
"हाँ, हाँ,..."
"ठीक, अब आप और आपके आचार्य क्या चाहते हैं-सो सब मालूम हो गया। हमारे मन्त्रीजी को इस सबकी व्यवस्था करने के लिए सन्निधान आदेश देंगे। इतना ही न?"
___ "एक बात और है। गुरुजी की दृष्टि में इन सबसे मुख्य बात है वह । आण्डाल जैसी पट्टमहादेवी और विष्णु जैसे सन्निधान-दोनों को देखने की उनकी आकांक्षा है। यह कब सम्भव होगा सो आज्ञा दें तो उन्हें उचित समय पर यहाँ बुलवा लाऊँगा।" एम्बार ने निवेदन किया।
"वे वयोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध और आचार्य पुरुष हैं। हम स्वयं जाकर उनके दर्शन करेंगे। आने से पहले सूचना दे देना। पहले आपके ठहरने तथा अन्य सुविधाओं की व्यवस्था मन्त्री जी करेंगे और हमें सूचित करेंगे। उसके बाद हम स्वयं आचार्य के दर्शन करने आएँगे। हमारी राजकुमारी का स्वास्थ्य तब तक थोड़ा सुधर जाएगा। नागिदेवण्णा! इनकी ओर ध्यान दें। अब आप विदा ले सकेंगे।" शान्तलदेवी ने कहा।
पट्टमहादेव शमला : भाग तीन :: 111