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बात हो गयी तो क्या होगा ? क्योंकि गुरुजी की बातों को वे कभी भूल नहीं सकते थे। जाने-अनजाने यही द्वन्द्व उनके मन में चल रहा था। आखिर जिज्ञासा की ही जीत हुई।
एम्बार ने पूछ ही लिया- "सुनते हैं कि आप बहुत बड़े शिल्पी हैं।" उसने सोचा कि इस व्यक्ति के बारे में जानने के लिए इसी तरह कोई सूचना मिल जाएगी।
'शिल्पी हूँ, सच है।"
"यहाँ किसी मन्दिर के निर्माण कार्य पर आये हैं ?"
"हमें बुलानेवाले कौन ?"
"ऐसा क्यों कहते हैं ?"
"किसी को मालूम ही नहीं कि मैं कौन हूँ ।"
यह सुन एम्बार की आँखें चमक उठीं। उसने सोचा कि जिसे जानने का कुतूहल रहा उसके लिए एक सूत्र हाथ आया। उसने कहा, "तो बताइए न, आप कौन हैं ?"
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" बताऊँ तो भी कुछ हल न होगा । "
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' बताकर देखिए, तो सही। बाद को प्रयोजन मालूम पड़ेगा।"
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'भगवान् ही जाने, क्या प्रयोजन है । "
" उन पर सारा उत्तरदायित्व डाल दीखिए। वह बिना किसी विघ्न-बाधा के सब
कुछ ठीक कर देंगे। हमारे गुरुजी यही कहा करते हैं।"
"ये गुरु कौन हैं ?"
"सो भी मालूम नहीं? बिना जाने ही आप उनके आश्रय के लिए आये ?"
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'आश्रय के लिए? आपकी बात मेरी समझ में नहीं आयी ?"
"नहीं तो आप पर इतना अभिमान गुरुजी को क्यों... ?"
"सो सब मैं नहीं जानता। अचानक इस गाँव में आया। देखा, गाँव-भर में उत्साह की लहर हैं। सुना कि कोई गुरुजी आये हैं और मन्दिर में मुकाम किया है। जो भी हो, महात्माजी के दर्शन करने के इरादे से प्रतीक्षा में खड़ा था । दर्शन मिल गया। उन्होंने स्वयं मेरे बारे में पूछताछ की। यही मेरा अहोभाग्य है। मेरे न चाहने पर भी उन्होंने स्वयं आश्रय दिया। बड़ों की रीत ही ऐसी होती है। " 'क्या आपने बताया है कि आप कौन हैं ?"
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'बता भी दूँ तो उससे उनका क्या प्रयोजन सिद्ध होगा ? लोककल्याण के लिए जन्म धारण करनेवाले महापुरुषों को हमें अपने व्यक्तिगत दुःख-दर्द सुनाकर कष्ट नहीं देना चाहिए। "
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आप नहीं बताएँगे तो वे कहाँ चुप रहेंगे ? कल अपने आप रहस्य खुल
पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन 155