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कारण उत्पन्न अनेक चिन्ताएँ चक्कर काट रही थों, एक-दूसरे से टकरा रही थीं। उसे नींद लगने का-सा कुछ नहीं लग रहा था। केवल पुरानी कड़बी यादें घूमघूमकर उसे सता रही थीं।
प्रतिदिन ब्राह्म-मूहूर्त में जगना, स्नान आदि से निबटकर आचार्यजी के स्नानपूजा-पाठ आदि के लिए तैयारी रखना-शिष्यों का यह सब दैनिक कार्यक्रम था।
अच्चान रोज की तरह समय पर सोया था। वह जल्दो उठा और अपने काम पर लग गया। एम्बार देरी से सोया था, साथ ही राजमहल के कार्यकलापों के कारण थका होने के कारण रोज की तरह वक्त पर न जग सका।
उधर अच्वान ने स्नान आदि से निबटकर कड़ाही में पानी भरा और चूले में आग देकर आचार्यजी के स्नान की व्यवस्था करने में लग गया। अब तक एम्बार को स्नान आदि समाप्त कर आ- आना चाहिए था। अभी तक न आने के कारण अच्चान कुछ चकित हो गया. और वह स्नानागार से बाहर निकलकर उस कुएँ के पास गया जहाँ वे नहाया करते थे। सोचा था कि एम्बार वहाँ होगा। परन्तु वह वहाँ भी नहीं था। यह सोचकर कि कहीं जंगल की तरफ गया होगा, वह लौटकर फिर स्नानागार में आ गया। पानी गरम हो रहा था, चूल्हे में अधजली लकड़ी को ठीक किया. फूंककर आग जलायी और फिर एम्बार की प्रतीक्षा करता बैठ गया। थोड़ा समय और बीत गया। एम्बार नहीं आया।
सूर्योदय हो रहा था, प्रातःकालीन अरुणिमा से प्रकृति शोभित हो रही थी। पक्षीगण चहकते हुए घोंसलों से निकलकर उड़ने लगे थे। यही आचार्यजी के प्रतिदिन के प्रात:सन्ध्या आदि के आरम्भ करने का समय था।
फिर भी एम्बार का अता-पता कुछ नहीं लगा, अब?
एम्बार कभी कर्तव्य-च्युत होनेवाला न था। अच्चान भी वैसा ही था। कभी समय पर काम करने से वे चूकते ही नहीं थे। एम्बार और अच्चान दोनों कार्य को आपस में बाँट लेते और आचार्य की सेवा बराबर ठीक ढंग से करते आये थे।
एम्बार स्वयं पहले जाग जाता. स्नान आदि से निबटकर आचार्यजी को जगाता और उनके शौच आदि की व्यवस्था अच्चान को सौंप देता, फिर खुद आचार्य के जप-तप, पूजा-पाठ आदि के लिए तैयारियाँ करने में लग जाता। यही उसका प्रात:कालीन प्रथम कर्तव्य था।
आचार्यजी के आने के पहले स्वयं स्नान कर, शुद्ध वस्त्र धारण कर, पानी गरम
158 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन