________________
रहे हैं। घर के अन्दर पहुँचा हो था कि मेरी पत्नी ने खबर दी। तब तक वे अपने स्नान आदि से निवृत्त होकर तिलक लगाकर अपने नित्य कर्म में लग गये थे। मैंने उन्हें देखा। राजमहल से रवाना होते वक्त की वह बात 'भगवान् रक्षक हैं। याद आयी, आप सन्निधान ने भी यही बात कही थी। मेरे हृदय ने इसी बात को फिर से दुहराया। फिर से उनको देखा। मुझे लगा कि सच ही भगवान् इस रूप में पधारे हैं। मैंने उन्हें साष्टांग प्रणाम किया। उन्होंने हँसते हुए पूछा, 'सब कुशल है?' तो मुझे यह कहना ही पड़ा कि बच्चा बीमार है। तो बोले, 'जगदल विरुदांकित वैद्य के घर में भी बीमारी? और मुस्कुरा दिय। में कोई भावान् को नहीं' मैंने कहा। इस पर उन्होंने कहा, 'यद्भाव्यं तद्भवति ।' फिर बोले, 'बच्चे को ले आइए।' बच्चे को गोद में लिपटाकर उनके सामने जा बैठा। अण्टी से एक डिबिया निकालकर, उसमें से कुछ चूर्ण घोलकर, अभिषिक्त तीर्थ में मिलाकर,
आँखें बन्द करके, हाथ जोड़कर वे कुछ ध्यानस्थ हुए। फिर वह घोल बच्चे को पिला दिया। बाद में कहा, 'अब इस बच्चे को बिस्तर पर लिटा दीजिए। एक घण्टे के अन्दर बच्चा चेतकर ठीक हो जाएगा।' उनके कहे अनुसार बच्चा चेत गया और स्वस्थ हो गया। वास्तव में उनमें अद्भुत शक्ति है। उनकी तेजपूर्ण दृष्टि ही पर्याप्त है। अनेक दोष दूर हो जाएंगे। उन्हें राजमहल में बुलवाकर राजकुमारीजी को उन महापुरुष की चमत्कारिक शक्ति से लाभ पहुंचाने का यत्न करना युक्त एवं आवश्यक है-यही मुझे लगा। इसलिए इधर भागा-भागा चला आया।'' पण्डित बिना रुके लगातार कह गये।
"अच्छा पण्डितजी, सन्निधान से कहकर व्यवस्था करेंगे। आपकी भक्ति एवं श्रद्धा का आपको कैसा फल मिला, वैसा ही फल अर्हन्त हमें भी दें। अब आप जा स्मकते हैं । जाते-जाते एक बार जक्की को देखकर कुछ कहना हो तो रुद्रव्ये से कहते जाइए।"
सोमनाथ पण्डित वहाँ से चले गये। परन्तु जिस उत्साह से वे आये थे उसके अनुरूप प्रफुल्लता शान्तलदेवी में न पाकर कुछ खिन्न तो हुए, फिर भी अपनी सलाह के लिए मान्यता नहीं मिलेगी ऐसा तो नहीं लगा। फिर अपने कर्तव्य के पालन करने की उन्हें तृप्ति तो रही हो।
पण्डितजी ने जो कहा था उस पर शान्तलदेवी को अविश्वास नहीं हुआ था। फिर भी उन बातों को वह मन-ही-मन दुहराती, सोचती रहीं। जितना ही वह सोची, वह विषय पेचीदा ही होता जाता। समस्या हल नहीं हो रही थी। चमत्कार आदि के बारे में अभी एक निश्चित विश्वास उनके मन में नहीं था। श्रद्धा और भक्ति से शुभ फल प्राप्त करने की साध्यता में विश्वास होते हुए भी इस चमत्कारों के विषय में उनके मन को एक युक्तिगत समाधान नहीं मिल सका
122 :: पद्महादेवो शान्तला : भाग तीन