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डाकरस दण्डनायक उठ खड़े हुए। सामाण्डित, कलिक गोपनन्दि पण्डित, कटकाचार्य सुमनोबाण भी उठ खड़े हुए।
आचार्य, उनके शिष्य, नागिदेवण्णा, श्रोपाल वैद्य, शुभकार्ति, नयकीर्ति, वामशक्ति पण्डित-ये लोग बैठे थे। शेष सब खड़े थे।
अन्त:पुर से तब पट्टमहादेवी नहीं, धीरे-धीरे चलती हुई राजकुमारी आयी। वहीं राजकुमारी जो बहुत समय से रोगग्रस्त होने के कारण दुबली-पतली हो गयी
थी।
सब चकित रह गये।
इसी राजकुमारी के स्वास्थ्य के लिए मनौतियाँ, पूजा-पाठ आदि बराबर चलते रहे थे। पोचिकच्चे के पति तेजम राजकुमारी के स्वास्थ्यलाभ की कामना करते हुए, तीन दिवस पूर्व बाहुबलि के दर्शन एवं प्रार्थना करने के लिए ही बेसुगोल गये थे। इसी राजकुमारी की बीमारी को दूर करने के लिए पधारे अनेक वैद्यशिरोमणि चिकित्सा कर-करके विफल हो गये थे।
परन्तु कल और आज में कितना अन्तर! यह कैसा परिवर्तन !! सब चकित और दिग्भ्रान्त!
. इस स्थिति में केवल सोमनाथ पण्डित ही ऐसे रहे कि जिन्हें इसका रहस्य ज्ञात था। उन्होंने आगे बढ़कर राजकुमारी को गोद में लेना चाहा। पोचिकच्चे ने इंगित किया। पण्डितजी पीछे की ओर सरक गये। ___आचार्य की तेज- पूर्ण दृष्टि राजकुमारी पर पड़ी। उनके चेहरे पर एक सन्तोष की आभा झलक पड़ी। ऊपर की ओर देखकर आचार्य ने ध्यान करके भगवान् को नमस्कार किया और कहा, "आण्डवन! तुम्हारी महिमा अपरम्पार है।"
फिर अन्दर से अंकनायक और कसवय्य नायक आये। उनके बीच उदयादिल्य, कुमार बल्लाल और कुँवर बिट्टियण्णा आये। उनके पीछे छोटे बिट्टिदेव और बिनयादित्य को गोद में लिये दो दासियाँ आयीं।
उन्हीं से लगकर, नंगी तलवार लिये अंगरक्षक और रक्षक सेना के सैनिक, अंकणा और कात्रणा आये। उनके पीछे सोने के रत्नजटित दण्ड लिये भाट थे। दरवाजे पर पहुँचते ही आमने-सामने दो कतारों में बैंटकर खड़े हो गये। उनको देखते ही सचिव नागिदेवण्णा, मंचिअरस दोनों द्वार की ओर बढ़े। श्रीपाल वैद्य, शुभकीर्ति और नयकीर्ति पण्डित तथा वामशक्ति पण्डित उठ खड़े हुए: एम्बार भी उठकर खड़े हो गये।
पोय्सल महाराज बिट्टिदेव, उनकी प्रेयसी पट्टमहादेवो शान्तलदेवी, दोनों रानियाँ बम्मलदेवी और राजलदेवो सभी अन्तःपुर से बाहर निकले। आते ही वे सीधे राजकुमारी के पास गये।
134 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन