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विवरण बाद में। अभी तो चिकित्सा हो।" कहकर वैद्यजी को कर्तव्योन्मुख
किया।
उन्होंने अपनी दवाइयों की पेटी के एक खाने से कुछ चूर्ण निकाला, अपनी हथेली में थोड़ा-सा लेकर आँख मूंदकर कुछ मन्त्र पढ़ा और फिर जक्की को सुंघा दिया। कुछ देर प्रतीक्षा की, फिर एक छोटी नली ले एक सिरा उसकी नाक में रखकर धीरे-से फूंका। चूर्ण नाक के अन्दर व्याप गया। एक-दो क्षणों के अन्दर ही एक बार जोर की छींक आ गयी। छींकने के जोर से उसका सारा शरीर काँप उठा। पंजर की हड्डियों चटकीं। वह घबराकर आँखें खोलकर उठने की कोशिश करने लगी कि तभी वैद्यजी और रुद्रव्बे ने वैसा ही लिटा दिया।
इतने में दासब्बे दूध ले आयो। रुद्रध्वे ने दूध पिला दिया। उसकी एक तरह से नींद की-सी अर्ध-जाग्रत स्थिति हो गयी थी।
वैद्य ने बताया, "रुद्रव्ने! इसे उठने न देना। मैं दो गोलियाँ और दे रहा है, उन्हें एक प्रहर के बाद शहद में मिलाकर चटा देना। अब की तरहऔर दो एक बार जोर से छींकें आएंगी, घबराने की जरूरत नहीं। अगर भूख की शिकायत करे तो मूंग की दाल और भुने चावल का दलिया पतला बनाकर पिला देना। प्यास की शिकायत हो तो केवल दूध ही पिलाना और कुछ नहीं, वह भी बहुत कम। समझी? घबराने का कोई कारण नहीं। कल सुबह तक वह ठीक हो जाएगी। एक चूर्ण देता हूँ, उसे रात को, अँधेरा होने के आधा प्रहर बाद, शहद में मिलाकर चटा देना। यह आज रात को गहरी नींद सोएगी। कल सुबह तक इसे हिलाना मत। यह भी ख्याल रखें कि इसे ठण्ड न लगे।" कहते हुए पण्डितजी ने दो गोलियाँ रुद्रव्ये के हाथ में थमा दीं।
दवा की पेटी को कोख में संभालते हुए वैद्य ने पट्टमहादेवी से कहा, "अब आज्ञा हो तो चलूँ।"
"जक्की को क्या हुआ सो तो बताया ही नहीं।"
वैद्य इस पर अचकचा गये और घबराहट में तुतलाते हुए-से बोले, "हाँ, मैं...मैं भूल गया। मेरे घर में बच्चा बीमार है, उसी धुन में ध्यान उस ओर चला गया। इसलिए भूल गया। क्षमा करें। इसे..." वैद्यजी अपने बच्चे की बीमारी की दशा से कुछ घबराये हुए-से लगे। इसे देख शान्तलदेवी ने कहा, "अब रहने दीजिए. पहले घर जाएँ, बच्चे की हालत देखकर मेरे पास खन्नर भेजें कि कैसा है। बाकी सब बातें बाद में होंगी।
"भगवान् ही रक्षक हैं; हम केवल निमित्तमात्र हैं। राजकुमारी जी का स्वास्थ्य..."
"सच है, आपका कहना सत्य है। भगवान् ही रक्षक हैं। हमारा भी यही
174 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन