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बिट्टिदेव, "कुछ कार्य है, हम मन्त्रणागृह जा रहे हैं। प्रधानजी आनेवाले - कहकर जल्दी-जल्दी चल पड़े।
शान्तलदेवी मुस्कुरायौं । रेविमय्या ने दूर से यह देखकर हाथ जोड़कर प्रणाम
किया
छोटे बिट्टिदेव की वर्धन्ती का उत्सव राजमहल तक ही सीमित रहा। अमात्य पोचिमय्या और घर के यही भी आह्वान गया। हेग्गड़ेजी को तो अपने कार्य स्थान बेलापुरी में रहना था, मगर अस्वस्थता के कारण परिवार समेत यादवपुरी में रहे और वहाँ से राजपरिवार के ही साथ दोरसमुद्र आकर राजमहल में ही मुकाम किया था। भोजन के कुछ देर पहले से ही आह्नानित सभी जन राजमहल में उपस्थित हो गये थे। मन्त्री नामदेव की बेटी सुष्वला, अमात्य पोचिमय्या की पुत्री मुद्दला- दोनों विशेष रूप से अलंकृत होकर आयी थीं। शताब्दी समारोह के समय मरियाने और भरत बेलापुरी से आये हुए थे, वे पिता डाकरस दण्डनाथ के साथ लौटे न थे। वे भी करीब-करीब बिट्टिगा के समवयस्क थे। उनके साथ रह गये थे। मुद्दला सुन्खला से उम्र में कुछ बड़ी थी। नाम के अनुरूप मुद्दला कुछ ज्यादा पुष्ट और थोड़ी मोटी-सी लगती थी, फौलाद की तरह मजबूत स्नायुयुक्त बिट्टिगा जैसे के लिए कुछ मोटी-सी लगी वह । सुव्वला हलकी-फुलकी कोमल लता की तरह लचकती... सुन्दर जोड़ी बन सकती है, यह लग रहा था। हलका सा गेहुँआ रंग और गाल पर बने हल्के गड्ढे देखकर शान्तलदेवी आकर्षित हुई। रुचकयोगवालों के लिए गाल पर गड्ढेवाली यह लड़की ही अच्छी है, उन्होंने अपने मन में सोच लिया। यह गाल के गवे जिसके हों, उसके लिए कुज का बहुत प्रभाव होने की बात ज्योतिषियों ने बतायी हैं, यह बात उन्हें याद आयी। मगर उन्होंने अपना निर्णय सुनाया नहीं। पहले मुद्दला के बारे में निर्णय हो जाय तो अच्छा होगा - मानकर उन्होंने पद्मलदेवी के सामने बात छेड़ी।
"हमारे छोटे दण्डनायक के लिए मुद्दला की जोड़ी अच्छी बैठेगी, है न?" 'किसके लिए मरियाने के लिए ?" पद्यलदेवी ने पूछा।
" वैसे तो वह आपका भतीजा ही है, देखिए आपके मन को अच्छा लगे तो निश्चय कर लेंगे।" शान्तलदेवी ने कहा ।
"इसमें मेरा क्या है, सब भाभी को ही निर्णय लेना है। वे अगर 'हीं' कहें तो और किसी से पूछने की जरूरत ही नहीं ।"
" वे अगर यहाँ होतीं तो पूछ सकते थे। आपकी क्या राय है ?" "लड़का भी वैसे ही पुष्ट और तगड़ा है, सब कुछ अपने दादा के ही जैसा । मुद्दला भी वैसे ही है। इन दोनों की जोड़ी अच्छी बैठती है। वर साम्य भी अच्छा
78 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन
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