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'आपकी मर्जी। सन्निधान कुछ कहना चाह रहे थे न?"
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'वही, हमारे बड़े भैया - पहले राज करनेवाले महाराज के जीवन को जिसने देखा है, आपकी बात को नहीं मानेंगे। भैया ने पहले प्रेम किया महादण्डनायकजी की पहली बेटी पद्मलदेवी से तब उन्हें प्रेम की गहराई का परिचय नहीं था। बाद में अन्य कारणों से उन्होंने उनसे दूर रहने का भी प्रयत्न किया। परन्तु पद्यलदेवी ने हठ पकड़ लिया। आप ही की तरह अपना निर्णय ना सुना दिया का 'शादी हो तो यहीं हो, नहीं तो संन्यास।' बहुत बातें हुईं। दण्डनायिकाजी की मृत्यु के समय की इच्छा पूर्ण करने के लिए महामातृश्री ने और हम सबने मिलकर समझा-बुझाकर तीनों बहनों का महाराज के साथ विवाह करवा दिया। वास्तव में वह एक अनोखा विवाह था । उसे उतना ही आदर्शपूर्ण होना चाहिए था। उन लोगों ने जन्म से ही उस स्थान को प्राप्त किया था। वह स्थान प्राप्त करने के लिए उनको अलग से कोई प्रयत्न करना न था। कौन प्रथम, कौन द्वितीय इसका निर्णय भगवान् ने ही कर दिया था। फिर भी अग्र स्थान की स्पर्धा चली, इस वजह से पता नहीं क्याक्या उत्पात राजमहल में हुआ। जिस किसी ने उन्हें देखा, देखकर यही प्रतिक्रिया व्यक्त की कि कोई भी ऐसे बहुविवाह के लिए स्वीकृति न देगा। एक असहज बात होगी वह।"
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"यहाँ स्थान- निर्देश तो हो गया था। परन्तु सन्निधान एक मुख्य विषय को शायद भूल गये हैं। जिसका प्रथम लड़का होगा उसी को सिंहासन -- इस अग्रस्थान की स्पर्धा सर्वोपरि हो उठी थी, वहीं, इस सारे उत्पात का कारण बन गयी। इसलिए यह प्रसंग प्रकृत सन्दर्भ के लिए निदर्शन नहीं बन सकता, न मार्गदर्शक ही बन सकता है। सन्निधान की एक हृदयेश्वरी है, वह पट्टमहादेवी हैं। उन्हीं की सस्सन्तान भावी राष्ट्र-प्रभु है। उस लौकिक स्पर्धा के लिए यहाँ अवकाश ही नहीं न?"
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"फिर भी लड़के को जन्म देनेवाली माँ कोई हो, अपना बड़ा बेटा ही अग्रस्थान का हकदार हो ऐसी वांछा असहज तो नहीं है। इसलिए ऐसी बात से दूर रहना ही अच्छा है।"
"हमारी सन्तान के लिए सिंहासन नहीं चाहिए। हमें उसकी आकांक्षा ही नहीं है। हम वचन देती हैं। "
'विवाहित हो जाने के बाद वचनपालन सम्भव नहीं-यही सोचकर तो भीष्म ब्रह्मचारी बने थे, यह मालूम नहीं ?"
'सन्निधान हमें भी ब्रह्मचारिणी रहने की आज्ञा दें तो हम वैसी भी रह लेंगी। हमने जिन चरणों को चुन लिया है उन्हें किसी भी कारण से बदल नहीं सकर्ती । हमारे वचन पर सन्निधान और पट्टमहादेवीजी को यदि विश्वास हो तो हम पर कृपा कर सकते हैं। हम राजवैभव से युक्त विवाह भी नहीं चाहतीं।
84 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन
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