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"ठीक, इसे सम्पन्न कराने के लिए हमें-आपको प्रयत्न करना होगा, क्योंकि उस लड़की का विवाह विधिवत् करने का आदेश महामातृश्री ने मुझे दिया है।"
"इस अकेली ही का क्यों, नागदेवी की लड़की के लिए भी योग्य वर का निर्णय आप ही को करना है न? महामातृश्री ने मुझसे यह बात कही थी, किसी दूसरे अनुचित सम्बन्ध की जब आत उठी थी।" बात को कहीं-से-कहीं पहुंचा दिया पालदेवी ने।
"जो अनुचित होगा वैसा काम यह राज परिवार कभी न करेगा। ऐसे कार्य का भागी भी नहीं बनेगा। हम पर इन दो लड़कियों की जिम्मेदारी है।"
"अभी थोड़ी देर पहले मैं बगीचे में गयी थी। वहाँ क्या देखा, जानती हैं ? कुमार बिट्टियण्णा उस जामुन के पेड़ पर चढ़कर, अच्छे पके जामुन चुन-चुनकर सुव्बला की ओर फेंक रहा था। वह भी उन्हें चखती हुई पेड़ पर अच्छे पके फलों की ओर उँगली से इशारा कर रही थी। कह रही थी-'गिराओ न?'
"मैंने जाकर पूछा, 'कौन-से फल, बेटी?' वह आँचल में भरे जामुन के फलों को वहीं लुढ़काकर भाग खड़ी हुई । शायद बेचारी डर गयी होगी। बुलाने पर भी नहीं लौटी। बिट्टियण्णा पेड़ से उतरा और बोला, 'डरपोक है।' मैंने कहा, 'कहीं दूसरी जगह जन्म लेकर राजमहल के इस बगीचे में आकर यों फँसते तो मालूम पड़ जाता तुम्हें भी अपना, साहस!' उसने कहा, 'शायद।'
"बिट्टिगा को जामुन बहुत पसन्द हैं। दो फल चुनकर उसे दे रहा था तो उस लड़की ने आकर कहा- मुझे भी पसन्द हैं। तो आओ, दूंगा,' कहकर वह खुद उसे यहाँ ले आया था। इसके बाद वे दोनों साथ ही अन्दर आये। बिट्टियपणा उसके गिराये उन फलों को उठाकर ले आया था। उन्हें उसने उस लड़की के आँचल में भर दिया
और कहा, 'अरी डरपोक, यह ले, जब मैं खुद तुमको वहाँ बुला लाया तो डरती क्यों है ? यह बगीचा हमारा है।' वह लड़की खिल उठी। फिर, 'तुमको...?' कहती हुई
आँचल में हाथ डाला तो बिट्टियण्णा यह कहकर चला गया, 'मैंने बहुत लिये हैं, और नहीं चाहिए।' तब शायद उन दोनों के मन में अन्य कोई भावना नहीं रही होगी। फिर भी मुझे लगा कि इन दोनों की जोड़ी कितनी अच्छी रहेगी।"
"आपको पसन्द है, दीदी?" "पूछना क्या? मुझे तो पसन्द है। परन्तु सन्निधान क्या कहेंगे?"
"मुझ पर छोड़ रखा है। फिर भी अकेली मैं ही निश्चय कर लँ यह अच्छी बात होगी? दो-चार लोग देख लें और कहें तभी ठीक होगा, तभी बात बनेगी।"
तब तक भोजन के लिए बुलावा आ गया। दोनों भोजन के लिए चली गर्यो।
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 79