________________
"लड़के की उम्र शादी के योग्य हो गयी है, ठीक है, पर शादी के लिए इतनी शीघ्रता क्यों?" बम्मलदेवी ने कहा।
"सो तो ठीक है। मगर लड़कीवालों के दबाव का भी ख्याल रखना है न? वह अभी तक कहीं बाहर नहीं गया है। उसके मन में यह कल्पना भी नहीं कि किस लड़की से प्रेम करें। कल अगर वह बाहर जाने लगे, किसी ऐरे-गेरे से प्रेम करने लगे
और जिद करने लगे कि उसी से शादी करेगा तो? उसके वंश की कीर्ति पर कलंक न लगे-इस विचार से उसका पालन कर, उसके परिवार को योग्य रीति से बसाने की भी जिम्मेदारी हम पर है न? इसलिए अच्छे परिचित परिवार की लड़की से अभी विवाह कर दें तो अच्छा ही होगा न?"
"आपके अनुभव के सामने हम क्या चीज हैं?"
"ऐसा नहीं; मेरा ऐसा कहने का एक उद्देश्य है। आप लोग भी व्यक्ति को तौलकर समझने में समर्थ हैं। उस दिन दो कन्याएँ आएँगी। उनमें से कौन हमारे विट्टिगा के लिए ठीक जोड़ी बन सकती है-देखकर आप लोगों को भी इस सम्बन्ध में सलाह देनी होगी। ठीक है न?"
शान्तलादेवी बात करती हुई जब बीच में हँस पड़ी थी तो बम्मलदेवी ने समझा था कि उस हँसी में व्यंग्य है। अब उसे राय देने के लिए कहा जा रहा है-इस आत्मीयता को देख-समझकर बम्मलदेवी आश्चर्यचकित रह गयीं। वह शान्तलदेवी की ओर साश्चर्य दृष्टि से देखने लगी।
"यों क्यों देख रही हैं? यह मानकर कि हमारी राय का क्या मूल्य होगा? या यह समझकर कि हम इसमें क्यों पड़ें?" शान्तलदेवी ने प्रश्न किया।
"हम हार गये यह तो निश्चित है। पट्टमहादेवी के मन की बात को समझ ही नहीं सकेगी। हम बिलकुल असमर्थ हैं।"
"तो मेरी रीति सन्दिग्ध है या अस्पष्ट?"
"न, न. ऐसा नहीं। आपके विचार कहाँ-से-कहाँ छलाँग मारते हैं, यह हमारे लिए पकड़ में नहीं आता। इसलिए कभी-कभी आपकी बातें हमें चकित कर देती हैं यही कह रही थी।"
"आप अपनी राय देंगी न?" "उसमें क्या? निर्णय तो आपको करना है।"
थों तो आत करते-करते उपाहार समाप्त हुआ। मंगलद्रव्य के साथ जाने से पहले बम्मलदेवी और राजलदेवी ने शान्तलदेवी के पैर छुकर कहा, "हमें सँभाल
लें।"
"वह तो सन्निधान से सम्बद्ध विषय है। अच्छी बात है।" कहकर उन्हें विदा किया।
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग्य तीन :: 77