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सुनाई पड़ी। रथ के स्तम्भ को लगकर एक कृपाण नीचे जा गिरी थी।
"पकड़ो उसे!" स्त्री की आवाज थी। अंगरक्षकों ने एक स्त्री वेषधारी व्यक्ति को पकड़ लिया।
झटका देकर गिरानेवाली, प्राण बचानेवाली बम्मलदेवी को आवाज के बल पर विट्टिदेव ने पहचान लिया। आवाज चिरपरिचित तो थी ही। सभी झट से शान्तलदेवी भी रथ से उतर गयीं। पद्यलदेवी आदि भी वहाँ पहुंच गयीं।
__"यहाँ थोड़ा भी व्यवधान न हो। पहले राजमहल में जाना उत्तम होगा।" बम्मलदेवी ने कहा। सभी लोग वहाँ से चल दिये।
महाराज की हत्या के प्रयास की इस घटना के अलावा शेष सभी कार्य नियोजित रीति से सम्पन्न हुए। खुष चर्चा रही कि पोयसलों की खुफियागिरी भी सुव्यवस्थित है। उसने चोल, चालुक्य और आलुपों के गुप्तचरों का पता लगा लिया था। उनकी राय भी जान ली थी और इन बातों को सम्बन्धित अधिकारियों से कहा भी। चालुक्य, चोल जैसे बड़े-बड़े राज्यों के गुप्तचर इस बृहदाकार सैन्य को देखकर भय से काँप उठे। छोटे आलुप राज्य के खुफिया यह सोच रहे थे कि जब तक पोय्सल अपनी बृहत् सेना के आकार-प्रकार को देखकर आनन्द-घिस्मृत रहेंगे तब तक जो कुछ हाथ लगे उतना ही अपना लें, इसे देख चकित थे।
___फलस्वरूप यही निर्णय किया गया कि आलुपों पर हमला करें। इसके लिए गुप्त रीति से सीमा प्रान्त में सेना रखने और अगर वे घुस पड़ेंगे तो वहीं उन्हें रौंद देने का भी निर्णय किया गया।
महाराज के प्राणहरण करने के लिए प्रयत्न करनेवाला पोट्टिपोम्बुचपुर के सान्तर जग्गदेव की तरफ से आया हुआ है-इसका पता भी लगा लिया गया। सुना कि वह एक बार मंचिअरस के पास भी आया था। उसे स्त्री का वेष धारण कर आवाज बदलकर बातचीत करते हुए बम्मलदेवी ने सुना भी था। उसने अपने को छिपाने तथा परिचय न होने देने के विचार से स्त्री-वेष धारण किया था। पता लगाकर कि वही स्त्री वेषधारी है-यह शंका उत्पन्न होने के कारण और आँचल में हाथ डालकर उठने के ढंग को देखकर ही बम्मलदेवी सन्निधान के पास दौड़ पड़ी थी तथा ठीक वक्त पर सन्निधान के बगल में जा पहुंची थी। अगर सन्निधान के पास न पहुँचती तो पता नहीं क्या हो जाता। इस घटना ने बम्मलदेवी को और ऊँचा कर दिया। साथ ही एक सीख भी मिल गयी। अंगरक्षकों को अधिक सावधान रहना चाहिए और किसी भी तरह का समारम्भ क्यों न हो, सदा सन्निधान के चारों ओर रक्षक दल को सन्नद्ध होकर तैयार रहना चाहिए।
इस शतमानोत्सव के सन्दर्भ में एक ख़ास बात और हुई। वह यह कि दोतीन दिन के बाद सचिव नागदेव दण्डनाथ के पुत्र धरणेन्द्र दण्डनाथ राजमहल
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 65