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में सन्निधान के दर्शन के लिए आये और बोले, "मेरी माताजी ने महामातश्री से हमारी सुब्बला के बारे में कहा था, सुना होगा। मेरी माताजी की यह अभिलाषा है कि चिण्णम दण्डनाथ के पुत्र बिट्टियण्णा से सुब्बला का विवाह हो। सुना कि महामातृश्री ने अपनी सहमति भी प्रकट की थी। माताजी ने कहा है कि यह बात सन्निधान से निवेदन कर स्वीकृति प्राप्त करें। कृपया स्वीकार कर हमारा उद्धार करें।"
"वह एक अनाथ बालक है। मन्त्री के घर की लड़की सो भी आपकी इकलौती बहन है न? किसी दूसरे भरे-पूरे परिवार में सम्बन्ध हो तो अच्छा होगा? बिट्टिदेव ने कहा।
"जनम से बड़े आश्रय को प्राप्त करनेवाला बच्चा कभी अनाथ नहीं होता। सन्निधान ने पुत्रवत् प्रेम से उसका पालन पोषण किया है। स्वीकृति मिले तो अहोभाग्य मानूँगा।" धरणेन्द्र ने कहा।
"पट्टमहादेवी स्वीकार कर लें तो हमें कोई आपत्ति नहीं। वास्तव में वह उन्हीं की गोद में पल-पुसकर बड़ा हुआ है।"
"मैं ही पट्टमहादेवी से निवेदन करूँ? या..."
तब तक रेषिमय्या अन्दर आ गया, इससे बात वहीं रुक गयी। उसने कहा, "पट्टमहादेवीजी ने सन्निधान के दर्शन की इच्छा व्यक्त की है। समय का होगा यह दर्याफ्त करने के लिए कहा है।"
___ "रेविमय्या, जब कोई आये हों तब सूचित करके आना चाहिए न? यह विषय तुम नहीं जानते, हो ऐसा नहीं। इनको जानते हो न?"
धरणेन्द्र ने स्वयं ही कहा, "रेविमय्या किससे अपरिचित है?"
"देखो, ये पट्टमहादेवीजी से मिलना चाहते हैं। इसलिए पट्टमहादेवीजी यहीं आ जाएँ तो भी हो सकता है। अगर वे चाहें तो इन्हें वहीं ले जाओ।"
रेविमय्या चला गया।
"बात अधूरी रह गयी, रेविमय्या के अचानक आ जाने से आपको कष्ट हुआ।"
"ऐसा कुछ नहीं: मैंने उस तरफ ध्यान नहीं दिया कि आनेवाला रेविमथ्या हो था। इसलिए बात को रोक दिया था। हमारी माताजी ने महामातृश्री से जब इस विषय में कहा था, तब सुनता हूँ कि रेविमय्या भी वहाँ मौजूद था।"
"तब तो पट्टमहादेवीजी को उसने यह बात बतायी होगी। अब तो हमारा आपका काम आसान हो गया।" बिट्टिदेव का कहना समाप्त हुआ। इतने में रेविमय्या पुन: अन्दर आया, उसके साथ ही शान्तलदेवी भी आयीं।
धरणेन्द्र ने उठकर प्रणाम किया।
66 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन