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मेरे अन्तरंग में अम्माजी का वास है। यह इस राष्ट्र का सौभाग्य बनकर राष्ट्र की जनता के मन में बस गयी हैं। अपने अंश के रूप में सन्तान भी दी है। उस मेरी अम्माजी के मन को किसी भी तरह का दुःख-दर्द किसी भी हालत में न होयही उनसे मेरी प्रार्थना है। इसलिए आँख मूंदकर उनसे प्रार्थना करना मात्र मेरा काम है। उन्हें क्या मालूम नहीं, वह तो सर्वज्ञ हैं। वह कभी अन्याय न करेंगे, यह मेरा दृढ़ विश्वास है।"
"तो इतनी देर तक इसी एकमात्र विषय को लेकर प्रार्थना करते रहे?"
"इतनी देर क्या, अन्तिम साँस लेने तक मेरी यही प्रार्थना रहेगी। फिर कब यहाँ आना होगा, पता नहीं। उस स्थान की एक विशेषता है; वहाँ खड़े होकर भगवान पर दृष्टि केन्द्रित करें तो अंग में एक तरह से बिजली का संचार-सा हो जाता है। समय का ध्यान ही नहीं रहता। यह मेरी बुद्धिशक्ति से परे है।"
इतने में मायण कटवप्र पहाड़ पर जल्दी-जल्दी चढ़ता हुआ उस जगह पहुंचा जहाँ ये लोग बैठे थे। झुककर प्रणाम किया। बोला-"प्रधान गंगराज, नागिदेव, माचण दण्डनाथ, पुनीसमय्या सब आ पहुंचे हैं- यही सन्निधान को निवेदन करने आया हूँ।"
"ठीक, हम भी चलेंगे" कहते हुए बिट्टिदेव किसी के उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना उठ खड़े हुए। यहाँ जो बातचीत चली उसके परिणामस्वरूप उनके भी मन में एक विचारधारा प्रवाहित हो रही थी। इस वजह से जितनी जल्दी हो वहाँ से चलना ही चाहिए. यह बातचीत फिर से न छिड़ जाय-यही वह चाहते थे। मायण का आना इसके लिए सहायक हुआ।
उसी रात मन्त्रणा-सभा सम्पन्न हुई। पट्टमहादेवी का एक नया सुझाव है। इसका प्रभाव क्या होगा--इस बात का अनुभव नहीं होने पर भी प्रयोग करने में कोई गलती नहीं दिखती। जब मंचि दण्डनाथजी कहते हैं कि इससे प्रयोजन है तो वह अनुभव की बात है, मान्य है। इस विचारगोष्ठी में हुई सारी मन्त्रणा का यही सारांश निकला। सबको सलाह यह रही कि दशहरे का समय इस कार्य के लिए उपयुक्त है।
गंगराज बोले, "इस सबके लिए खर्चा बहुत होगा। निर्णय लेने से पहले हमारे खजाने की स्थिति को समझना होगा। इस आयोजन की रूपरेखा पहले बन जाती तो खजांची से कोष की स्थिति मालूम कर ली जा सकती थी।"
पुनीसमय्या ने कहा, "अगर चारों ओर से युद्ध के बादल छा जाएँ तो खजांची से आर्थिक स्थिति जानने की कोशिश करते बैठे रहेंगे? किसी तरह से उसके लिए धन संग्रह करना ही पड़ेगा न? ऐसे एक सैन्य सम्मेलन के संगठन करने से कई छुटपुट लड़ाइयाँ, सम्भावित युद्ध-बिना कहे-सुने अपने आप स्थगित हो सकते हैं:
60 :: पट्टमहादेवी शाम्सला : भाग तीन