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इनमें से किसी भी अवस्था की उपेक्षा न करते हुए सभी अवस्थाओं में जीवन को सकारात्मक दिशा प्रदान करना जीवन के सम्यक् प्रबन्धन के लिए एक आवश्यक कर्त्तव्य है (विस्तृत विवरण के लिए देखें , अध्याय – 5.1.1)। 11) जीवन में बहिरंग परिवेश भी मिलता है और अंतरंग परिवेश भी। बहिरंग परिवेश का सम्बन्ध
आसपास के मानवीय एवं गैर-मानवीय पदार्थों से है, जबकि अंतरंग परिवेश का सम्बन्ध आत्मिक एवं शारीरिक पक्षों से है। जीवन-प्रबन्धन का मूल नियन्त्रक अंतरंग परिवेश और उसमें भी आत्मिक-पक्ष है। इसीलिए जीवन-प्रबन्धन की प्रक्रिया का अन्तिम उद्देश्य आत्मिक-पक्ष को परिष्कृत करना है। इसमें अनेकानेक निषेधात्मक तत्त्व हैं, जिनका परिहार करना होता है, जैसे - मिथ्यात्व, अज्ञान, संज्ञाएँ (आहार, भय, मैथुन, परिग्रह), राग-द्वेष, कषाय (क्रोध, मान, माया. लोभ) एवं इच्छाएँ आदि। इसी प्रकार. इसमें अनेकानेक सकारात्मक तत्त्व योग्यतारूप में विद्यमान हैं, जिनका प्रकटीकरण करना होता है, जैसे – सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, समत्वयोग इत्यादि (विस्तृत विवरण के लिए देखें, अध्याय – 13)।
सार रूप में यह कहा जा सकता है कि जीवन के अनेकानेक आयाम होते हैं, जिन्हें ध्यान में रखकर जीवन जीना होता है। यही जीवन-प्रबन्धन की सम्यक् दिशा भी है। 1.2.5 जीवन के विविध रूप एवं मानव-जीवन में प्रबन्धन की योग्यता
जो प्राण धारण करता है, उसे प्राणी कहते हैं, लेकिन प्राणियों के भी अनेक रूप होते हैं। इन रूपों में परस्पर भिन्नता होती है। कोई रूप निम्न, तो कोई उच्च श्रेणी का होता है। इनमें से कौन-सा जीवन ऐसा है, जिसमें जीवन-प्रबन्धन की सर्वश्रेष्ठ योग्यताएँ होती हैं, यह एक विचारणीय प्रश्न है।
जैनदर्शन में जीवन का वर्गीकरण करते हुए जीवन के वैविध्य को अनेक दृष्टिकोणों से दर्शाया गया है और इस बात को सिद्ध किया गया है कि मनुष्य जीवन एक श्रेष्ठ जीवन रूप है, जिसमें जीवन-प्रबन्धन की असीम योग्यताएँ निहित हैं। इनमें से प्रमुख वर्गीकरण इस प्रकार हैं - (1) संसारी एवं मुक्त के आधार पर
जीवन का वर्गीकरण करते हुए सर्वप्रथम संसारी और मुक्त - इन दो रूपों में जीवन का विभाजन किया गया है। 51 वह जीवन, जो भव–संसरण अर्थात् परिभ्रमण से निवृत्ति रूप है, मुक्त-जीवन कहलाता है 52 और वह जीवन, जिसमें जन्म-मरण रूप परिभ्रमण जारी रहता है, संसारी-जीवन कहलाता है। जीवन-प्रबन्धन की अपेक्षा से मुक्त-जीवन, जीवन के सम्पूर्ण विकास का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण (Model) है, क्योंकि इस अवस्था को प्राप्त जीव कर्ममल से मुक्त होकर अनन्त अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करते हैं। संसारी जीवन जीने वाले सभी प्राणियों को किसी न किसी रूप में जीवन-प्रबन्धन की आवश्यकता होती है, परन्तु इनमें भी मनुष्य ही जीवन-प्रबन्धन का सुयोग्य अधिकारी होता है।
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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