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teafद्रका टीका श० १० ३०२ सू० ३ वेदना स्वरूपनिरूपणम्
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पुद्गलद्रव्यसम्बन्धात् द्रव्यवेदना, नारकादिक्षेत्रसम्बन्धात् क्षेत्रवेदना, नारकादिकालसम्बन्धात् कालवेदना, क्रोधशोकादि भावसम्बन्धात् भाववेदना । सर्वे संसा'रिणो जीवातुर्विधामपि वेदनां वेदयन्ति । एवं 'तिचिहा येयणा - सारीरा, माणसा, सारी माणसा' पुनस्त्रिविधा वेदना, शारीरी, मानसी, शारीरमानसीच । तत्र समकास्त्रिविधमपि वेदनां वेदयन्ति, असंज्ञिनस्तु शारीरीमेत्र वेदनां वेदयन्ति । तथा'तिविद्या वेणा साया, असाया, सायासाया' पुनस्त्रिविधा वेदना - शांता अशाता, शाताऽशाताच । तत्र सर्वे संसारिणस्त्रिविधामपि वेदनां वेदयन्ति, तथा - 'तिविहा
होती है वह पुल द्रव्य के सम्बन्ध से होती है । नारकादि क्षेत्र के संबंध से जो वेदना होती है वह क्षेत्र वेदना है । नारकादि काल के सम्बन्ध से जो वेदना होती है वह काल वेदना है। क्रोध, शोक आदि भाव के सम्बन्ध से जो वेदना होती है वह भाव वेदना है । समस्त संसारी जीव इस चतुर्विध वेदना का अनुभव करते रहते हैं । 'तिविहा वेपणा - सारीरा, माणसा, सारीरमाणसा' वेदना इस तरह से तीन प्रकार की भी होती है - शारीरिक वेदना, मानसिक वेदना और शारीरिक्रमानसिक वेदना. इनमें जो समनस्क (संज्ञी) जीव हैं वे तीनों की वेदना भोगते रहते हैं । तथा असंज्ञी जो जीव है वे केवल शारीरिक वेदना को ही भोगते हैं । 'तिविहा वेयणा सापा, अलाया, सायासाया' तथा शाना, अशाता और शाताशाता के भेद से भी वेदना तीन प्रकारकी है । समस्त संसारी जीव इस त्रिविध वेदनाको भोगते रहते
प्रकार
પુદ્ગલ દ્રવ્યના સ’બધી વેદના હાય છે નારકાદિ ક્ષેત્ર *મ ધી જે વેઢના છે તેને ક્ષેત્રવેદના કહે છે. નારકાદિ કાળ સબંધી જે વેદના થાય છે તેને કાળ વેદના કહે છે. ક્રષ, શાક આદિ ભાવની ઋપેક્ષાએ જે વેદના થાય છે તેને ભાવેદના કહે છે. સમસ્ત સ`સારી જીવા આ ચારે પ્રકારની વેદનાના અનુભવ ४२ मछे " तिविहा वेयणा-सारीरा, माणसा, खारीरमाणसा " बेहनाना या प्रभाो पत्र प्रभार 43 छे - (१) शारीरि5 बेहना, (२) मानसिङ वेदना, मने (3) शारीरिक मानसिङ वेहना मेमां ने समनस-सशी व तेथे ત્રણે પ્રકારની વેદના ભાગળ્યા કરે છે પરન્તુ અસ'ની જીવા ફક્ત શારીરિક વેદના જ ભેગવે છે
तिविहा वेयणा - साया, असाया, सायासाया તથા વેદનાના આ પ્રમાણે पायु आयु अाश पडे छे - ( १ ) शातावेना, (२) अशातावेहना ( 3 ) शाताशाता વેદના, સમસ્ત સસારી જીવ આ ત્રિવિધ વેદનાને ભેગળ્યા કરે છે,
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