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भगवतीसरे पहाति, धातुरक्तवत्रपरिहितः परिपतितविभक्तः, आलभिका नगर्याः मध्यमभ्येन निर्गच्छति 'जाव उत्तरपुरस्थिमं दिसीभार्ग अवकमई' याचच-उत्तर पौरस्त्यमपंफ्रामति, "अवक्कमित्ता विदंडकुंडियं च. जहा खंदओ जाव पवइयो' अपक्रम्य त्रिदण्डकुदण्डिकां च यथा स्कन्दकः यावत् प्रत्रजितः, ' सेसं जहा सिवस्स भाव' कोप-यथा शिवस्य यावद् वर्णनं कृत तथैव पुद्गलस्यापि बोध्यम्, 'अन्वावा में जो विशेषता है वह इस प्रकार से है कि पुद्गल ने अपने त्रिदण्ड को एवं कुण्डिका को उठाया यावत् भगवे वस्त्रों को पहिरा, उसका विभंग अज्ञान पतित हो गया इस स्थिति से युक्त बना हुआ वह आलभिका नगरी के ठीक बीचोयीच से होकर निकला 'जाव उत्तरपुरस्थिम विसीभागं अयकमह' यावत् निकलकर वह ईशान दिशा की भोर चला गया ‘अवकमित्सा जहा खंदओ जाव पव्वइओ' वहाँ जाकर उसने अपने त्रिदण्ड को, कुण्डिका को एक ओर रख दिया. भौर स्कन्दक की तरह वह प्रव्रजित हो गया, इस विषय का बाकी का वर्णन जैसा शिवराजर्षि का वर्णन किया गया है वैसा ही जानना चाहिये । और वह वर्णन " अव्यावाहं सोक्खं अणुहवंति, सासयं
કરતાં પુલ પરિવ્રાજકના કથનમાં આટલી જ વિશેષતા છે–પુલ પરિવ્રાજક પિતાના ત્રિદંડ, કમંડળ આદિ ઉપકરણે ઉઠાવ્યા; ભગવાં ધારણ કર્યા અને જેનું વિજ્ઞાન નષ્ટ થઈ ગયું છે એ તે આલલિકા નગરીની વચ્ચે va ilsran. “जाव उत्तरपुरथिम दिसीभाग अवकमइ" त्या२ Is,
ALL l त२५ गये।. अवकमित्ता तिदंदकुंडियौं जहा “ HAIR BAL OR જઈને તેણે પિતાના ત્રિદંડ, કમંડળ આદિને એક તરફ મૂકી દીધાં અને महा, खंदुओ. जाव पव्वरो २४४नी २भ प्रवrat A २ ४0" मायन પર્યતનું સમસ્ત કથન ગ્રહણ કરવું ત્યાર બાદ સમસ્ત કર્મોને ક્ષય કરીને સિદ્ધિ પામવા પર્યતનું સમસ્ત કથન શિવરાજ ઋષિના કથન પ્રમાણે સમજી
मा शत भित, मुद्ध, भुत भने समस्त माना मन्त४२ मनीन : #2 : . ..