Book Title: Bhagwati Sutra Part 09
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 733
________________ प्रमेययन्द्रिका टीका श० १२ उ० २ सू० १ उदायनराजवर्णनम् ७०९ म्न्यां नगर्या सहस्रानीकस्य राज्ञो भगिनी, मृगावत्या देव्याः ननन्दा-पति भगिनि, वैशालिश्रावकाणाम्-वैशालिको-भगवान् महावीरस्तस्य वचनं शृण्वन्ति श्रावयन्तिवा तद्रसिकत्वादिति वैशालिकश्रावकारतेषाम् , आईतानाम्-अहंदमक्तानाम् श्रमणानाम्, पूर्वशय्यातरा-प्रथमस्थानदात्री, साधवः पूर्व समागताः सन्त स्तद्गृहे एव प्रथमं वसति याचन्तेस्म, तेषां वसतेः स्थानदात्रीत्वेन प्रसिद्धत्वादिति सा पूर्वशय्यातरापदेंन प्रसिद्धा आसीद, सा का-इत्याह-जयन्ती नाम श्रमणोपासिका आसीत् , सा च जयन्ती सुकुमार यावत् पाणिपादा, सुपा-परमसुन्दरी, अभिगत यावत-जीवानीवा-विदितजीवाजीवतत्वा विहरति-अस्ति ।।५० १॥ मूलम्-तेणं कालेणं, तेणं समएणं, सामीसमोसढे, जाव परिसा पज्जुवासइ । तएणं से उदायणे राया इसीसे कहाए लद्धटे लमाणे हहतुट्टे'कोडुंबियपुरिसे सदावेइ, सहावित्ता, एवं वयासी-खिप्पामेव. भो देवाणुप्पिया! कोसंधि नयरि सभितरजाव सुरुवा अभिगय जाब विहरइ' उस कौशाम्बी नगरी में सहस्रानीक राजा की पुत्री जयन्ती नाम की श्रमणोपासिका रहती थी यह शतानीक राजाकी वहिन थी उदायन राजा की फुआ थी मृगावती देवी की ननन्द थी तथा वैशालिक-भगवान महावीर के वचनों को सुनने सुनाने में रसिक होने के कारण उनके साधुओं की प्रथम शय्यातरस्थानदात्री थी जब जब साधु आते तब वे पहिले उससे ही वसति की याचना करते थे इसलिये यह उनके ठहरने के लिये स्थानदात्रीरूप से प्रसिद्ध थी अतः इसी कारण यहां उसे "प्रथमशय्यातर" पद से विशिष्ट करके कहा गया है। यह हाथ पैरों से बहुत सुकुमार थी परमसुन्दरी थी जीव अजीव आदी जीवाजीवतत्व की ज्ञाता थी ।सू०१॥ રહેતી હતી તે શતાનીક રાજાની બેન થતી હતી, ઉદાયન રાજાની ફેઈ થતી હતી અને મૃગાવતીની નણંદ થતી હતી. તે શ્રમની ઉપાસક હતી ભગવાન મહાવીરના વચનને શ્રવણ કરવાની રુચિવાળી હોવાને કારણે તે તેમના સાધુઓની પ્રધાન સ્થાનદાત્રી હતી મહાવીર પ્રભુના કેઈ પણ સાધુને તેને त्या पाश्रयस्थान अवश्य भजी २हेतु, तरणे तेन भाटे मही“प्रथम शय्यातर" प्रथम स्थान हात्री" विशेषणुनी प्रयोग राय छ त सुमार આદિ વિશેષણથી યુક્ત હતી, ઘણી જ સુંદર હતી અને જવ અજીવ વિગેરે છવા જીવ તત્વનીજ્ઞાતા હતી, ઇત્યાદિ વર્ણન અહીં ગ્રહણ કરવું સૂ૦૧

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