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भगवती
स्वपुत्रमुदायनं राजानं पुरतः अंग्रे कृत्वा, तमेन, स्थितेषं यावत्: विनयेन माञ्जलिपुटा भगवन्तं पर्युपास्ते, 'तरणं समणे भगवं महावीरे उदायणस्स रण्णो, मियावईए देवीए, जयंतीए समणोवासिंयाए, तीएय मईतिमहालियाए नाव 'परिसा पडि गया' ततः खलु श्रमणो भगवान् महावीरः उदायनस्य राम्रो मृगावत्याः देव्याः, जयन्त्याः श्रमणोपासिकायाः तस्या महातिमहालयाया अतिविशालायाः वर्षदि धर्म परिकयति, धर्मकथां श्रुखा पर्पत् प्रतिगता, 'उदावणे पडिगए, मियावई देवी विपडिया' उदायनो राजा प्रतिगर्तः, मृगावती देव्यपि प्रतिगवास्वगृहं गता ॥ सू० २ ॥
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मूलम् -'तणं सा जयंती समणोवासिया समणस्स भगओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा, निसम्म, हद्वतुट्टा सम भगवं महावीरं वंदइ, नमंसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता, एवं वयासीमें कहा गया है प्रभु को वन्दना की और उन्हें नमस्कार किया वन्दना नमस्कार कर फिर वह अपने पुत्र उदायन राजा को आगे करके समघसरण में आई और खडी २ बंडे विनय के साथ प्रभु की पर्युपासना करने लगी 'तएण समणे भगवं महावीरे उदायणस्स रण्णो मियाब ईए देवी जयंतीए समणोवासियाए नीए य महति महालियांए जाव परिसा पडिया' इसके बाद श्रमण भगवान् महावीर ने उदायन राजा को एवं उस की माता मृगावती देवी को तथा श्रमणोपासका जयन्ती को उस अति विशाल परिषद को धर्मोपदेश दिया धर्मोपदेश सुनकर पर्षत् विंसजित हो गई 'उदायणे पडिंगए मियावई देवी विपडिगया' उदायन राजा और माता मृगावती देवी ये दोनों भी अपने घर पर आ गये ॥ ०२ ॥
૩૨૩મા ઉદ્દેશકમાં દેવાન દાના કથન પ્રમાણે સમજવુ. પ્રભુને વદણા નમસ્કાર કરીને તે પેાતાના પુત્ર ઉદાયને રાજાની પાછળ, બન્ને હાથ જેડીને વિનયपूर्व प्रभुनी पर्युपासना करती थंडी सभवसरशुभां अली रही. "तपंज समणे भगव' महावीरें उदायणास रंण्णो' मियावईए देवीए जयंतीए 'समणोवासिया तीए य महति महालियाए जावं परिक्षा पडिंगया " ત્યાર માદ શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે ઉદયન રાજાને, મંગાવતી દેવીને તથા શ્રમપાસિકા જયન્તીને તથા તે ઘણી વિશાળ પરિષદમાં ધર્મોપદેશ દીધા. ધર્માંપદેશ શ્રવણ કરીને પરિષદ વિસર્જિત થઈ ઉદાયન રા અને મૃગાવતી દેવી પણ પાતપેાતાને ઘેર ચાલ્યા ગયા. સૂ॰ા