Book Title: Bhagwati Sutra Part 09
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 694
________________ भगवती उन्मुक्तमणिसुवर्णस्य-परित्यक्तरत्नादिकस्य, विवगयमालावन्नगविलेवणसम, निक्वित्तसत्यमुसलस्स, एगस्स, अविइयस्स, दर्भसंथारोक्गयस्स' व्यपगतमा. लावर्णकविलेपनस्य -परित्यक्तस्त्रक् पिष्ठकविलेपनस्य, निक्षिप्तशस्त्रमुशलस्यदूरीकृतखड्गादिशस्त्र-मुशलस्य, एकस्य-वाह्यसहायापेक्षया केवलस्य, अद्वितीयादिसहायापेक्षया द्वितीयरहितस्य, दर्भसंस्तारकोपगतस्य-कुशासनोपविष्टस्य, 'पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणस्स विहरित्तए तिकटु एवं संपेहेड' पाक्षिक-पौष धम्-पौषधोपवासं, पतिजाग्रतः-अनुपालयतो विहर्तु-स्थातुं मम श्रेयः पूर्वपोषधापेक्षया अस्य विशिष्टनिर्जराहेतुत्वात् इति कृत्वा-इत्येवं विचार्य, एवम् उत्तप्रकारेण, संपेक्षते-निश्चिनोति 'संपेहित्ता जेणेव सावत्थी नयरी, जेणेव उप्पण समणोवासिया, तेणेव उवागच्छइ' संप्रेक्ष्य-विनिश्चित्य, यत्रेव-श्रावस्ती नाम और पौषध करूं, ब्रह्मचर्यपूर्वक रहूं और मणि सुवर्ण आदि का सर्वथा त्याग कर दू 'ववयमालावन्नगविलेवणस्स निक्खित्थसत्थमुसलस्स एगस्स अविइयस्स, दम्भसंथारोवगयस्स' माला का और मर्दन कराने का त्यागपूर्वक, मुशल आदि शस्त्र का परित्यागपूर्वक दर्भके आसर पर पैटू 'पक्खियं पोसह पडिजागरमाणस्स वितरित्तए तिका एवं संपेहेइ' क्यों कि इस स्थिति में रहकर पालित किया गया पाक्षिकपौषध-पौषधोपवास मुझे अधिक श्रेयस्कर होगा, क्यों कि पूर्वपौषध की अपेक्षा यह पौषध विशिष्टनिर्जरा का हेतु होता है-इस प्रकार से उसने पौषध करनेका निश्चय किया 'संपेहिता जेणेव सावत्थी नयरी, जेणेव सए गिहे जेणेव उप्पला समणोवासिया तेणेव उवागच्छह' इस प्रकार निश्चय करके वह जहां श्रावस्ती नगरी थी और उसमें भी जहां પૌષધશાળામાં જઈને પૌષધ કરૂં, બ્રહ્મચર્ય પૂર્વક રહું અને મણિ, સુવર્ણ माहिना सथा त्याग ४३. “ ववगयमालावन्नगविलेवणस्स निक्खित्तसत्यमुसलस्स, एगस्स अविइयस्स, दुभसंथारोवगयस्स" भाणाना भने महनना त्यान. પૂર્વક, મુશલ આદિ શસ્ત્રોના ત્યાગપૂર્વક દર્ભના આસન પર બેસીને " पक्खियं पोसह पडिजागरमाणस्त विहरित्तए त्ति कट्ट एवं संपेहेइ” पालन કરાયેલ પાક્ષિક પૌષધપવાસ જ મારે માટે અધિક શ્રેયસ્કર થઈ પડશે. કારણ કે આગળ બતાવ્યા પ્રમાણે પૌષધ કરવામાં આવે તે કરતાં આ પ્રકારે પિષધ કરવામાં આવે તે કર્મોની વધારે નિર્જરા થશે. તેથી તેણે આ પ્રકારે पौषध ४२वान। निश्चय ध्ये. “संपेहित्ता जेणेव सावत्थी नयरी, जेणेव उप्पला समणोवासिया सेणेव उवागच्छइ" मी प्रमाणे स८५ ४शन ते श्रावस्ती

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