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प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १२ १० १ सू० ३ शङ्खश्रावकचारतनिरूपणम् ६९६ जागरिका-जागरणं, प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-गोयमा ! तिविहा जागरिया पण्णत्ता' हे गौतम ! त्रिविधा-त्रिाकारा जागरिका प्रज्ञप्ता, तभेदानाह-'जहा-वुद्धनागरिया, अबुद्धजागरिया, सुदखुजागरिया' तद्यथा-बुद्धजागरिका, अबुद्धजागरिका, सुष्टजागरिका, गौतमस्तत्रकारणं पृच्छति-'सेकेणटेणं भंते एवं पुच्चइ-तिविहा जागरिया पण्णता, तंजहा-बुद्धजागरिया, अनुद्धजागरिया, मुदस्खु जागरिया?' तत्-अथ, केनार्थेन-कथं तावत् , एवम्-उक्तरीत्या, उच्यते यत्-त्रिविधा जागरिका प्रज्ञप्ता, नया बुद्धनागरिका, अबुद्धजागरिका, सुदृष्ट जागरिका इति ? एतासां विमृणां जागरिकाणां कोऽर्थः ? इति प्रश्नः, भगवानाह'गोयमा ! जे इसे अरिहंता भगवंता, उप्पन्ननाणदसणधरा जहा खंदए जात्र करके फिर इस प्रकार से पूछा-'काविहाणं अंते ! जागरिया पण्णत्ता' हे भदन्त ! जागरिका कितने प्रकार की कही गई है ? उत्तर में प्रभु ने कहा-'गोयमा' हे गौतम ! 'तिषिहा जागरिया पण्णत्ता' जागरिका तीन प्रकार की कही गई है। ' तंजहा' जो इस प्रकार से है-'बुद्धजागरिया, अबुद्धजागरिया, सुदखुजागरिया ' बुद्धजागरि का, अवुद्धजागरिका और सुदर्शनजागरिका-सुदृष्ट जागरिका अप गौतम इन भेदों के कहने का कारण पूछते हैं-से केजद्वेण भंते ! एवं वुच्चइ, तिबिहा जागरिया पण्णत्ता-तंजहा-बुद्धजागरिया, पण्णत्ता-तंजहाबुद्धजागरिया, अबुद्धजागरिया, दरखजागरिया' हे अदन्त ! बुद्धजागरिका, अबुद्धजागरिका और सुदृष्ट जागरिको के भेद से जो आपने जागरिका के ये तीन भेद कहे हैं सो इसमें कारण क्या है ? अर्थात् हन तीन जागरिकाओं का शब्दार्थ क्या है?
महावीर प्रभुन। उत्तर-" गोयमा ! 3 गौतम । “तिविहा जागरिया पण्णत्ता" Rs १ प्रा२नी ही छ “ तंजहा" ते प्रारी नाये प्रमाणे छ-"बुद्धजागरिया, अबुद्ध जागरिया, सुदखुजागरिया” (१) मुद्ध જાગરિકા, (૨) અબુદ્ધ જાગરિકા અને (૩) સુદણ જાગરિકા આ ભેદનું સ્વરૂપ જાણવાની જિજ્ઞાસાથી ગૌતમસ્વામી મહાવીરપ્રભુને આ પ્રમાણે પ્રશ્ન પૂછે छे-" से केणद्वेण भते ! एवं बुच्चइ तिविहा जागरिया पण्णत्ता-तंजहा बुद्धजागरिया, अबुद्धजागरिया, सुक्खुजागरिया " गवन् ! मुद्धनगर, અબુદ્ધ જાગરિકા અને સુદેષ્ઠ જાગરિકાના ભેદથી આપે જાગરિકાના જે આ ત્રણ ભેદે કહ્યા છે, તેનું કારણ શું છે? એટલે કે આ ત્રણે પ્રકારની नगरपान २१३५ उयु छ ?
महापार प्रभुना उत्तर-" गोयमा! जे इमे अरिहंता भगवंता, उप्पन्नना