Book Title: Bhagwati Sutra Part 09
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 727
________________ refer टीका श० १२० १ ० ४ शङ्खश्रावक चरितनिरूपणम् ७०३ सत्यमेवेति यावत् श्रमण भगवन्तं महावीरं वन्दते, नमस्यित्वा, संयमेन तपसा भात्मानं भावयन् विहरति - तिष्ठति ॥ सू० ४|| ।। इति श्री विश्वविख्यात - जगद्व-प्रसिद्धवाचक पञ्चदशभाषाकलितललित कलापालापक प्रविशुद्धगद्यपद्यनेकग्रन्थनिर्मापक वादिमानमर्दक श्री शाहू छत्रपति कोल्हापुरराजप्रदत्त - 'जैनाचार्य ' पदभूपित - कोल्हापुरराजगुरुबालब्रह्मचारि — जैनाचार्य — जैनधर्मदिवाकर - पूज्य श्री घासीलालवतिविरचितायां श्री " भगवतीसुत्रस्य" प्रमेयचन्द्रिकाख्यायां व्याख्यायां द्वादशशत के प्रथमोद्देशकः समाप्तः ॥ १२-१॥ ही, हे भदन्त ! आपके द्वारा कहा गया यह सब विषय यथार्थ ही है। इस प्रकार कह कर वे गौतम अन्त में यावत् संयम और तपसे आत्मा को भावित करते हुए अपने स्थान पर विराजमान हो गये || सू० ४ || जैनाचार्य श्री घासीलालजी महाराज कृन " भगवतीसूत्र " की प्रमेयचन्द्रिका व्याख्या के बारहवें शतक का पहला उद्देशक समाप्त ॥ १२-१॥ મા પ્રમાણે કહીને ભગવાનને વંદણુાનમસ્કાર કરીને, સયમ અને તપથી આત્માને ભાવિત કરતા, એવા ગૌતમ સ્વામી પાતાના સ્થાન પર વિરાજ भान थर्ध गया ॥ सूत्र४॥ નૈનાચાય શ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજ કૃત “ભગવતીસૂત્ર ”ની પ્રમેયચન્દ્રિકા ખારમા શતકના પહેલે ઉદ્દેશક સમાપ્ત ૧૨-૧૫ વ્યાખ્યાના क

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