Book Title: Bhagwati Sutra Part 09
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 692
________________ भगवती सूत्रे ६६८ श्रमणोपासकान्, एवं - वक्ष्यमाणप्रकारेण, अवादीत् - ' तुन्भेणं देवाणुपिया ! विलं असणं पाणं खाहमं साइमं उबक्खडावेह' हे देवानुप्रियाः । यूयं खल्ल विपुल अशनं, पानं, खादिम, स्वादिमम् उपस्कारयत-निष्पादयत, 'तणं अम्हे तं विपुलं असणं पाणखाइम, साइमं आसाएमाणा, विसाएमाणा परिभाएमाणा परिभुंजे माणा पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणा विहरिस्सामो' ततः खलु वयं तत् विपुलम् अशनं पानं खादिमं स्वादिमम् आस्वादयन्तः यतनया सामान्येन, विस्वा दयन्तः विशेषयतनया परिभुञ्जानाः यतनयैव परिभोगं कुर्वाणाः, परिभाजयन्तःविभज्य परस्परम् अन्येभ्योऽपि ददानाः, पाक्षिकं - पक्षे भवं पाक्षिकं पौषधं प्रतिजाग्रत:- अनुपालयतः, विहरिष्यामः - स्थास्यामः, 'तएणं ते समणोवासया संखस्स समणोवासगस्स एयमहं विणएणं पडिसुणंति' ततः खलु ते श्रमणोपासकाः शङ्खस्य इसके बाद उस श्रमणोपासक शंखने उन श्रमणोपासकों से ऐसा 'कहा- 'तुन्भेण देवाणुनिया बिउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्ख'डावे' देवलुप्रियो ! आप लोग विपुलमात्रा में अशन, पान, खादिम और स्वादिम रूप आहार को तैयार करवाओ (तएण अम्हे तं विपुलं असणं पाण खाहमं साइमं आसाएमाणा बिसाएमाणा परिभाषमाणा परिभुंजे'माणा पक्खियं पोसह पडिजागरमाणा विहरिस्सामो' तब हम लोग उस चारों प्रकार के आहार से क्षुधा को शांत करते हुए, फिर मध्यस्थभाव से विशेष रूप से क्षुधा को शांत करते हुए, तथा एक दूसरे के लिये भी उसे देते हुए इस प्रकार करते हुए हम लोग पाक्षिक पौषध करेंगे 'तपण से समणोवासया संखस्स समणोवासगस्स एयमहं विणएर्ण पडिसुणंति' जब शंख श्रमणोपासकों से ऐसा अपना हार्दिक अभिप्राय તરફ જતાં જતાં તે શખ નામના શ્રમણે પાસકે અન્ય શ્રમણેાપાસકાને આ प्रभा ह्युं - तुव्भेणं देवाणुपिया विउल असणं पाण खाइम' साइम' उषFace" हे देवानुप्रियो ! साथ धो भोटा प्रभाणुभा अशन, पान, ખાક્રિમ અને સ્વામિ રૂપ ચારે પ્રકારને આહ'ર તૈયાર કરાવા. ' (तएण ' अम्हे तं विपुल असणं पाण' खाइम साइम आसाएमाणा विखापमाणा परिभाषमाणा परिभुजेमाणा पक्खियं पासह पडिजागरमाणा विहरिस्सामो) पछी આપણે ખયાં તે ચારે પ્રકારના આહિર વડે આપણી ક્ષુધાતુ' શમન કરીને, મધ્યસ્થ ભાવે વિશેષ રૂપે ધાતુ શમન કરીને, એક બીજાને આગ્રહપૂર્વક જમાડીને, આપણે પાક્ષિકપૌષધ કરશુ. ८८ तरण से समणोवासया सखस्स समणोवागस्स एयमट्ठ विणणं पडिનંતિ” તે શ્રમણેાપાસકેાએ શખ નામના શ્રમણેાપાસકની તે સલાહના વિન در

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