Book Title: Bhagwati Sutra Part 09
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती सूत्रे
सुनिहताः शान्ताः, निचिन्ता इत्यर्थः विस्वस्था:- विश्रान्ताः सन्तः विष्ठत, 'अहं णं संखं समणोवासगं सदावेमि तिकट्ट, तेर्सि समणोवासगाणं अंतियाओ डिनियम' अहं खलु शङ्ख श्रमणोपासकं शब्दयामि - आहयामि इतिकृत्वा - इत्युक्त्वा तेषां श्रमणोपासकानाम् अन्तिकात्- समीपात् प्रतिनिष्क्रामतिनिर्गच्छति 'पडिनिक्खमित्ता सावत्थीए नगरीए मज्झ मज्झेणं, जेणेव संखस्स समगोत्रासगस्स गिहे तेणेत्र उवागच्छइ' प्रतिनिष्क्रम्य - निर्गत्य, श्रावस्त्याः नगर्याः मध्यमध्येन - प्रध्यभागेन यत्रैव शङ्खस्य श्रमणोपासकस्य गृहम् आसीत्, तत्रैव उपागच्छति' उवागच्छत्ता संखस्स समणोवासगस्स हिं अणुपविट्टे' उपागत्य शङ्खस्य श्रमणोपासकस्य गृहम् अनुप्रविष्टः । ' तरणं सा उप्पला समणोवासिया पोखर्लि समणोवासयं एज्जमाणं पासइ ' ततः खलु सा उत्पला नाम श्रमणोपासिका शङ्खभार्या पुष्कलिं श्रमणोपासकम्, आयन्तम् आगच्छन्तम् पश्यति, प्रियो ! आप लोग निश्चिन्त होकर बैठ रहें - ' अहं णं' संखं समणोवासगं सद्दावेमि' मैं जाता हूं और श्रमणोपासक शंख को बुलाकर लाता हूं- 'त्तिक, तेसिं समणोवासगाणं अंतियाओ पडिनिक्खमइ' ऐसा कह कर वह पुष्कली श्रमणोपासक उन श्रमणोपासकों के पास से चला गया 'पडिनिरुखमित्ता सावत्थीए नगरीए मज्झं मज्झेण जेणेव संखस्स समणोवासगस्स हिं तेणेव उवागच्छद्द' जाकर वह श्रावस्ती नगरी के बीचोबीच से होता हुआ जहां श्रमणोपासक शंख का घर था वहां आपहुँचा, 'उवागच्छित्ता संखस्स समणोवासगस्स गिहं अणुपविट्ठे ' वहाँ आकर वह शंख श्रमणोपासक के मकान में प्रविष्ट हुआ - ' तरणं सा उप्पला सनणोवासिया पोक्खलिं समगोवासयं एज्जमाण पासह' इतने में श्रमणोपासका उत्पलाने श्रमणोपासक पुष्कली को आते हुए देखा पासित्ता हट्ठतु आसणाओ अन्भुट्ठेह' संख भ्रमणोवा महावेमि " हुं छु भने शमश्रावाने मोसावी बाबु ४. "त्ति कट्टु देखि समणोवासगाणं अतियाओ पडिनिक्खमइ " मा अभाव કહીને તે પુષ્કલી નામના શ્રાવક તે શ્રમણેાપાસકે પાંસેથી રવાના થયેા. " पढिनिक्स्वमित्ता यावत्थीए नयरीए मध्झ मज्झेण जेणेव संखस्स भ्रमणोवासगरस गिर' तेणेत्र उवागच्छइ " ते श्रमो पास है। पाथी नी४जैसे ते युष्म्ली નામના શ્રાવક શ્રાવસ્તી નગરીની વચ્ચેના માર્ગો પરથી પસાર થઇને જ્યાં
"
श्रावस्तु घर तु त्यां भावी योग्या. " वागच्छिता संस्म भ्रमणबागस्स गिद्द अणुपविट्ठे ' त्यांने तेथे समश्रावना धरभां प्रवेश अय.
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तणं सा उप्पलों समणोवासिया पोक्स्खलि समणोवासयं ભાએં ઉપલા શ્રાવિકાએ તે પુશ્કેલી શ્રાવકને ઘરમાં
पासइ " शमनी આવતા મુખ્યા.

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