Book Title: Bhagwati Sutra Part 09
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 707
________________ प्रमेयेन्द्रिका टीका श.१२ १० १ १०२ शसश्रावकसरितनिरूपणम् ६५ पादविहारचारेणं सावत्थिं नयरिं मझं मल्झेण जाव पज्जुवासइ, अभिगमोनलिक' प्रतिनिष्क्रम्य-निर्गत्य, पादविहारचारेण-चरणाभ्यां गमनेन श्रावस्ती नगरीमा श्रित्य मध्यमध्येन-मध्यभागेन यावत् निर्गत्य, यत्नैव श्रमणो भगवान् । महावीर आसीत् , तत्रैव उपागत्य श्रमणं भगवन्तं महावीर वन्दने, नमस्यति, वन्दित्वा, 'नमस्यित्वा, विनयेन प्राञ्जलिपुटः सन् भगवन्तं पर्युपास्ते, अत्र अस्य शतस्य पौपधयुक्तत्त्वात् भगवतः पूर्वोक्ताः पश्चअभिगमाः न सन्ति, पूर्वोक्तः पश्चमकारकः अभिगमोऽस्यनास्ति, सचित्तादिद्रव्याणां विमोचनीयांनाम भीवात् इतिभावः । 'तएणं ते समणोवासगा कल्लं पादुप्पभाए जाव जलते व्हासा मित्ता' पौषधशाला से निकलकर 'पादविहारचारेणं सावधि नयरिं ममें मज्झेणं जाव पज्जुवासह, अभिगमो नत्यि' बाहर निकल कर वह पैदल ही श्रावस्ती नगरी के ठीक बीचों बीच से होकर जहां श्रमण भगवान् महावीर थे वहां आये, वहां आकर के श्रमण भगवान महावीर को. उसने धन्दना की, नमस्कार किया, वन्दना नमस्कार करके विनय से दोनों हाथ जोड़कर भगवान की पर्युपासना की। यहां पौषध में रहने के कारण पांच अभिगन नहीं कहे गये हैं। तात्पर्य कहने का यह है कि प्रभु के पास जाते समय जानेवाला सचित्त वजेन आदि पांच अभि. गमों से युक्त होकर जाता है-सो यहां पर शंख श्रमणोपासक के पांच अभिगम नहीं कहे गये हैं क्यों कि वे पौषध में बैठे हुए थे अतः उनके पास सचित्त आदि वर्जनीय द्रव्यों का अभाव था 'तएणं ते समणोवासगी कल्लं पाउपभाए जाव जलंते पहाया, कयबलिकम्मा, जाव सरीरां संएहि तपोषणामाथी २ नया, “पडिनिक्खमित्ता पादविहारचारेणंसावथि नयरिं मज्ज्ञ मझेगं जाव पज्जुवासइ, अभिगमो नत्थि महार નીકળીને, પગપાળા જ તે શ્રાવસ્તી નગરીના મુખ્ય માર્ગે થઈને આગળ વધે, અને જ્યાં મહાવીર પ્રભુ વિરાજતા હતા ત્યાં ગયે ત્યાં જઈને તેણે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વંદણ કરી અને નમસ્કાર કર્યા વંદણનમસ્કાર કરીને તેણે વિનયપૂર્વક બને હાથ જોડીને ભગવાનની પર્થપાસના કરી અહીં પાંચ અભિગમ કહ્યા નથી, કારણ કે શખ અણગાર પૌષધમાં બેઠેલા હતા, તેથી સચિત આદિ પાચ વજનીય વસ્તુઓને તેમની પાસે અભાવે જ હતા એ સામાન્ય નિયમ છે કે સચિત્ત આદિ પાંચ પ્રકારની વસ્તુઓના ત્યાગ પૂર્વક જ પ્રભુની સમીપે જવાય છે તેનું નામ જ અભિગમથી યુક્ત થઈને rg गाय 2. "तएणं ते समणोवासगा कल्ल' पाउप्पभाए जाव जलंते पहाया,

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