Book Title: Bhagwati Sutra Part 09
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 708
________________ - भगवतीसू 'कयमलिकम्मा जाव सरीरा सएहिं सएहिं गिहेहिं तो पडिनिक्खमंति' ततः खलु ते श्रमणोपासकाः कल्ये प्रभाते प्रादुष्प्रभातायां रजन्यां यावत् सूर्ये ज्वलवि'प्रकाशमाने सति, स्नाताः कृतवलिकर्माणो - दत्तवायसाद्यन्नाः यावत्कृतकौतुकमङ्गलमायश्चित्ताः सर्वालङ्कारविभूषितशरीराः, स्वकेभ्यः स्वकेभ्यः - निजनिजेभ्यो गृहेभ्यः प्रतिनिष्क्रामन्ति-निर्गच्छन्ति, 'पडिनिक्खमित्ता एगयओ मिलायंति ' प्रतिनिष्क्रम्य - निर्गत्य, एकतो मिलन्ति एकत्री भवन्ति, 'मिलायित्ता सेसं जहा 'पढमं जाव पज्जुवासंति' एकतो मिलित्वा - एकत्रीभूय शेषं यथा द्वितीयशत के पञ्चमद्देश तुङ्गकनगरीवास्तव्यश्रावकाणां प्रथमं निर्गमनं प्रतिपादितम् तथैव इदमपि निर्गमनं प्रतिपत्तव्यम्, यावत् भगवतः समीपे गत्वा भगवन्तं वन्दित्वा, नमस्यित्वा, विनयेन प्राञ्जलिपुटाः सन्तो भगवन्तं पर्युपास्ते, 'तणं समणे भगवं महावीरे तेर्सि समणोवा सगाणं तीसेय महतिमहालियाए सभाए धम्मका जात्र 'सएहिं गिर्हितो पडिनिक्खमंति' इसके बाद वे श्रमणोपासक प्रातः सूर्योदय होने पर स्नान करके, बलिकर्म कर के वायस आदिकों के लिये अन्नवितरण करके यावत्- कौतुक मंगल एवं प्रायश्चित्त करके और : समस्त अलंकारों से विभूषित शरीर होकरके अपने २ घरों से निकले 'पडिनिक्खमित्ताः एगयओ मिलायंति ' निकलकर फिर वे एक स्थान पर इकट्ठे हुए ' मिलायित्ता सेसं जहा पढमं जाव पज्जुवासंति' एक स्थान पर इकट्ठे होकर फिर वे इस प्रकार से चले कि जैसा प्रथम निर्गमन का वर्णन इसी के द्वितीयशतक के दशमोद्देशक में तुङ्गिकानगरी के रहने वाले श्रावकों का कहा गया है - यावत् भगवान् के समीप जाकर उन्हों ने भगवान को वन्दना की, नमस्कार किया और विनय ., कयबलिकम्मा, जाव सरीरा सहि सएहि गेहेहिंतो पडिनिक्खमंति " हवे ते ગામના અન્ય શ્રાવકા પણ પ્રભાતકાળે સૂચૌંય થતાં જ સ્નાન કરીને, ખલિકમ કરીને (કાગડા આદિને અન્ન આપવું તેનું નામ ખલિકમ છે), કૌતુક મંગળ અને પ્રાયશ્ચિત્ત કરીને અને સમસ્ત અલ'કારાથી શરીરને વિભૂષિત કરીને, પાતપેાતાનાં ઘેરથી મહાવીર પ્રભુને વંદણાનમસ્કાર કરવા भाटे नीजी पडया " पडिनिक्खमित्ता एगयओ मिलायंति " घेरथी नीडजीने तेथे मे! ग्यामे भेठां थयां " मिलायिता सेसं जहाँ पढम जाव जुवात ” તેએ મહાવીર સ્વામી પાસે કેવી રીતે ગયા તેનુ વર્ણન બીજા શતકના દસમાં ઉદ્દેશકમાં તુગિષ્ઠાનગરીના શ્રાવકાના નિગમનના વર્ચુન પ્રમાણે સમજવું. “ તેમણે ભગવાનને વંદણા નમસ્કાર કર્યા અને વિનયપૂર્વક મને હાથ જોડીને તેમણે શ્રમણ ભગવાનની પર્યું`પાસના કરી. ” આ કથન

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