________________
प्रमेयचन्द्रिकोटीका श०१० १०५ सू०२ चमरेन्द्रादीनामग्रमहिषीनिरूपणम् १६३ महताऽहतनाटयगीतवादिततन्त्रीतलतालत्रुटितघनमृदङ्गपटुमवादितरवेण भोगभोगान् भुञ्जानो विहर्तु प्रभुः ? केवलं परिवारद्धर्था वा किन्तु नैव च खलु मैथुनप्रत्ययिकम् , स्थविराः पृच्छन्ति 'वलिस्स णं भंते ! वइरोयणिदस्स पुच्छा' हे भदन्त ! वलेः खलु वैरोचनेन्द्रस्य वैरोचनराजस्य कति अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः ? इति पृच्छा, भगवानाह-'अज्जो पंच अगामहिसीओ पण्णताओ' हे आर्याः ! बलेः पश्च अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः 'तंजहा-मुंभा १, निसुंभा २, रंभा ३, निरंमा ४, मदणा५,' तद्यथा-शुम्भा १, निशुम्भा २, रम्भा ३, निरम्भा ४, मदना ५, च, 'तत्थ णं एगमेगाए देवीए अट्ठ सेसं जहा चमरस्स' तत्र खलु पञ्चसु मध्ये एकैदेवों एवं देवियों से युक्त हुआ मृदङ्ग आदि बाजों की तुमुल ध्वनिपूर्वक दिव्य भोगों को भोगने के लिये समर्थ हो सकता है क्या? तो इसका उत्तर ऐसा है कि वह परिवार रूप ऋद्धि से अथवा परिचाररूप ऋद्धि से दिव्य भोगों को भोग सकता है, मैथुन निमित्तक भेोगों को नहीं भोग सकता है। अब स्थविर मुनिराज भगवान् से ऐसा पूछते हे-'बलिस्स णं भंते ! वहरोयर्णिदस्स पुच्छा' हे भदन्त ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि के कितनी पट्टदेवियां कही गई हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'अज्जो पंच अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ' हे आर्यों ! बलि की पांच अग्रहिषियों- देवियों कही गई हैं। 'तं जहा-सुंभा, निसुंभा, रंभा, निरंभा मदणा' उनके नाम इस प्रकार से हैं-शुम्भा, निशुम्भा. रम्भा, निरम्भा, मदना. 'तत्थणं एगमेगाए देवीए अहट सेसं जहा चमरस्स' इन पांच अग्रमहिषियों में से एक २ अग्रमहिषी का દેવીઓના સમૂહથી વીટળાઈને, ઉપર્યુક્ત ચાર હજાર દેવીઓના સમૂહ સાથે દિવ્ય ભેગો ભેગવી શકે છે ખરો?
ઉત્તર-હે આ! વેશ્રવણ લેકપાલ અન્ય દેવની સાથે નાસ્ત્ર, સંગીત આદિ દિવ્ય ભેગો ભેગવી શકે છે, પરંતુ તે ત્યાં મૈથુન સેવન કરી શકતો નથી.
स्थविर मभवताना प्रश्न-" बलिस णं भंते ! वइरोयणि दस्स पुच्छा" ભગવન! વૈરાચનેન્દ્ર, વૈરચનરાજ બલિને કેટલી અગ્રમહિલીએ કહી છે?
महावीर प्रसुनो उत्त२-“अज्जो ! पंच अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ" माय! मदीन्द्रने पांय अभडिपी। (पट्टराणी) ४ी छे “ तंजहा-सुभा, निसुभा, रमा, निरभा मदणा" मना नाम नीय प्रभा छ- (१) शुभमा, (२) निशुम्मा, (3) २'भा, (४) नि२ मा भने (५) मन (तत्यणं एगमेगाए देवीए अद्व सेस