Book Title: Bhagwati Sutra Part 09
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 651
________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका २० ११ उ० १२ सू०२ ऋषिभद्रपुत्रकथतनिरूपणम् ६२७ वन्दिस्या, नमस्यित्वा एवं-वक्ष्यमाणपकारेण, अवादिषुः-‘एवं खलु भंते ! इसि मद्दपुत्ते समणोवासए अम्हं एवं आइक्खइ, जाब पुरूदेइ'-हे भदन्त ! एवं खलु उक्तरीत्या ऋषिभद्रपुत्रः श्रमणोपासकः, अस्माकम् एवं-वक्ष्यमाणप्रकारेण, आख्याति, यावत्-भाषते-प्रज्ञापयति, प्ररूपयति यत्-'देवलोएमु ण अज्जो ! देवाणं दसवाससहस्साई जहणेणं ठिई पण्णत्ता' हे आर्याः। देवलोकेषु खलु देवानां दशवर्षसहस्राणि जघन्येन स्थितिः प्रज्ञप्ता, "सेण पर समयादिया जाय, तेण परं वोच्छिन्ना देवाय, देवलोगाय, से कहमेयं भंते ! एवं?' तेन परं-तदनन्तरम् , समयाधिका यावत्-द्विनिचतुःपश्चपट्सप्लाष्टनवदश संख्याता संख्यात समयाधिका उत्कृष्टेन त्रयस्त्रिंशत् स.नरोपमाणि स्थिति प्रज्ञप्ता तेन परस्-तदनन्तरम्-व्यु. श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे, वहां जाकर उन्हों ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना की, नमस्कार किया बन्दना नमस्कार करके फिर उन्होंने उनसे इस प्रकार पूछा-' एवं ग्रलु मंते! इसिभरपुत्ते समणोवालए अम्हं एवं आइक्खा , जाब पहवे' हे अदन्त ! श्रमणोपासक ऋषिभद्रपुन आवक जो हम लोगो से ऐसा करते हैं, यावत्भाषण करते हैं, अपने विषय की प्रज्ञापना करते हैं और उसकी प्ररूपणा करते हैं कि "हे आर्यो ! देवलोकों में देश की जघन्यरूप से स्थिति १० हजार वर्ष की है, और इससे आगे एकसयम, दो समय, तीन समय, चार समथ, पांच समय, छहसमय, सातसमय, आठसमय, नौ समय, दश समय, संख्यात समय और असंख्यातलमय से अधिक होती हुई वही स्थिति तेतीसलागरोपम तक की उत्कृष्ट हो जाती है। બેઠા હતા ત્યાં ગયા ત્યાં જઈને તેમણે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વંદણ કરી, નમસ્કાર કર્યા વદનમસ્કાર કરીને તેમણે તેમને આ પ્રમાણે પ્રશ્ન धूछया-" एवं खलु भंते । इखिमपुत्ते समणोवासए अम्हं एवं आइक्खड़, जाव परुवेइ" भगवन् । पास- श्राविद्रपुत्र मभने मे छे, એવું ભાંખે છે (પ્રતિપાદન કરે છે, એવી પ્રજ્ઞાપના કરે છે અને એવી પ્રરૂપણ કરે છે કે “હે આયે ! દેવલોકમાં દેવેની જઘન્ય સ્થિતિ દસ હજાર વર્ષની છે અને ત્યાર બાદ એક સમય, બે સમય, ત્રણ સમય, ચાર સમય, પાંચ સમય, છ સમય, સાત સમય, આઠ સમય, નવ સમય, દસ સમય, સંખ્યાત સમય અને અસ ખ્યાત સમય પ્રમાણ અધિક થતી થતી ૬૩ સાગરોપમ પર્યન્તની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ હોય છે કોઈ પણ એવું દેવલે ક નથી જેમાં ૩૩ સાગરોપમ કરતાં અધિક ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ હોય અને કઈ પણ એ દેવ નથી

Loading...

Page Navigation
1 ... 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770