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भगवतीस्त्र सम्यक्तया, विनयेन, भूयोभूयः क्षमयन्ति । 'तएणं ते समणोवासया पसिणाई पुच्छंति' ततः खलु ते श्रमणोपासकाः पिभद्रपुत्रम् अन्यान् प्रश्नान पृच्छन्ति, 'पुच्छित्ता, अट्ठाई परियाइयंति' प्रश्नात् पृष्ट्वा, धर्थान , पर्याददते परिगृहन्ति 'परियाइत्ता, श्रमणं भगवं महावीरं बंदंति, नर्मसंति' अर्थान् पर्यादाय-परिगृह्य, श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दन्ते, नमस्यन्ति, 'वंदित्ता, नमंसित्ता, जामेव दिसं पाउन्भूया, तामेव दिसं परिगया' वन्दित्वा, नमस्थित्य, यामेव दिशमाश्रित्य मादुर्भूताः, तामेवदिशं प्रतिगताः निश्त्ताः ॥ २॥
ऋपिभद्रपुत्रस्य सिद्विवक्तव्यता । मूलम्--"भंते त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ, णमंसइ, वंदित्ता, नर्मलित्ता, एवं वयाती-पलूणं भंते! इसि. भद्दपुत्ते समणोदालए देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पठनइत्तए ? गोयमा ! णो इणटे समझे, अर्थ को नहीं माननेहप अपने दोष को बड़ी अच्छी तरह से विनयपू. र्वक हार २ क्षमा याचना की 'तएणं ले लमणोवासया पसिणाई पुच्छंनि ' इसके बाद प्रमणोपालम्हों ने भगवान ले और भी प्रश्नों को पूछा-'पुच्छित्ता अहाइं परियाईति' प्रश्नों को पूछ कर फिर उन्हों ने उनके द्वारा दिये गये समाधानरूप अर्थ को ग्रहण किया 'परियाइत्ता समणं भगवं महावीर वंदति नभसति' ग्रहण करके फिर उन्हों ने श्रमण भगवान महावीर को बन्दना की और उन्हे नमस्कार किया 'बंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिलं पडिगया' चन्दना नमस्कार कर फिर वे जिल दिशा से-स्थान से आये थे उसी उसी दिशा को पीछे चले गये ॥सू०२॥
से समावास्या पसिणाइ पुन्छ ते" त्या२ ६ ते श्राप भने त प्रश्नो ५५ ५७या, “पुच्छित्ता अट्ठाई परियाइति" मने प्रशोना समायान ३थे तभये ४ी वातना स्वी२ थे “ परियाइत्ता समण भगवं महावीर वंदति नमसति” त्या२ मा भाये शथी ए भगवान महावीरने ! ४२ी मने नभ२४१२ ४ा. " वंदित्ता, नमंसित्ता जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया" य नमः४२ शने तेरे शाम भाव्या उता તે દિશામાં–પિત પિતાને સ્થાને પાછાં ફર્યા સૂર