Book Title: Bhagwati Sutra Part 09
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 664
________________ ६४० भगवतीस् कदाचित् आलभिकायाः नगर्याः, शङ्खचनात् चैत्यात् प्रतिनिष्काम्यति, 'पडिनिक्खमित्ता बहिया जगप्रयविहारं विहरइ' प्रतिनिष्कास्य, वहिः प्रदेशे जनपदविहारं विहरति, 'तेणं कालेणं, तेणं समएणं आलमिया नामं नयरी होत्था' तस्मिन् काले तस्मिन समये आलभिका नाम नगरी आसीत् , वर्णकः, अस्या वर्णनम् औपपातिक चम्पानगरी वर्णनवदवसे यम् , 'तत्थ णं संखवणे णामं चेइए होत्था, वण्णओ' तत्र खलु आलभिकायां शङ्कवनं नाम चैत्यम् आसीत्, वर्णकः, अस्य वर्णनम् पूर्णभद्रचैत्ववर्णनबद् विज्ञेयम् , 'तस्स णं संखवणस्स अदूरसामंते पोग्गले नाम परिवायएं परिवसइ' तस्य खलु शङ्ख्यनस्य अद्रसामन्ते-नातिदूरे नातिप्रत्यासन्ने पुद्गलो नाम परिव्राजकः परिवसति, 'रिउव्वेयजजुब्वेय जाव नएस सुपरिनिट्टिए छड़े शंखवन चैत्य से निकले 'पडिनिक्खमित्ता पहिया जणश्यविहारं विहरह. और निकलकर बाहर के देशों में विहार करने लगे तेण कालेणं तेण समएण आलभिया नाम नयरी होत्था' उस काल में और उस समय में आलभिका नामकी नगरी थी 'वण्णओ' इस नगरी का वर्णन औपपातिक सूत्र में वर्णित हुए चंपानगरी को तरह से जानना चाहिये 'तत्थ णं संखवणे णाम चेइए होत्था-वाणओं' उस आलभिका नगरी में उद्यान था जिसका नाम शंखवन था, इसका वर्णन भी औपः पातिक सूत्र में वर्णित हुए पूर्णभद्र चैत्य की तरह से ही जानना चाहिये, 'तस्सण संखवणस्स अदूरसामंते पोग्गले नाम परिव्वायए परिवसई' उस शंखवन चैत्य से कुछ थोड़ी सी दूर पर एक परिव्राजक रहताथा जिसका नाम पुद्गल था यह — रिउवेय, जजुब्वेय जाव नएसु सुपरिनिદિવસે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે આલલિકા નગરીના શંખવન ચત્યમાંથી એટલે धानमाथी विडा२ ४. “पडिनिक्खमित्ता पहिया जणवयविहारं विहरइ" भने, मालिनगरीमाथी नीजान मारना न५मा वि२१! माया. 'तण कालेणं वेण समएण' अलभिया नाम नयरी होत्था" a णे मन त समये मावि नामनी नगरी ती. “वण्णओ" मो५५ाति सूत्रमा या नाशन २:વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે, એવું જ આલલિકા નગરીનું વર્ણન સમજવું, " तत्थ णं संखवणे णाम चेइए होत्था-वण्णओ" ते नगरीमा 'भवन नाभन ચિત્ય (ઉદ્યાન) હતું. ઔપપાતિક સૂત્રમાં પૂર્ણભદ્ર ચૈત્યનું જેવું વર્ણન કરपामा माव्यु छ, मे मा भवन, येत्यनु वन समन" तस्सण संखवणस्स अदूरसामंते पोग्गले नाम परिव्वायए परिवसइ" शमन येत्यथा બહુ દૂર પણ નહીં અને બહુ સમીપ પણ નહીં એવે સ્થાને એક પરિमा २२ &al, २नु नाम पुरस तु. “ रिसव्वेय, अजुम्वेय, जाव

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