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भगवती च्छिन्ना देवाश्च देवलोकाश्चेति, हे भदन्त ! तत्-कथमेतत् एवं संभवति? तेन यदेवमुक्तं तत्सत्यम् असत्यं वेतिप्रश्नः! 'अज्जो त्ति समणे भगवं महावीरे ते सम्णोवासए एवं वयासी'-ततः खलु भो आर्याः। इति सम्बोध्य श्रमणो भगवान महावीरस्तान् श्रमणोपासकान् , एवं-वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादी-'जं णं अज्जो! इसिमपुत्ते समणोवासए तुम्भं एव आइक्खइ, भाव परूवेई'-हे आर्याः! यत्खलु ऋषि भद्रपुत्रः श्रमणोपासको युष्माकम्-एव-वक्ष्यमाणप्रकारेण, आख्याति, यावत्भापते, प्रज्ञापयति, प्ररूपयति यत्-'देवलोगेस णं अज्जो ! देवाणं जहण्णेणं दसवाससहस्साई ठिई पण्णत्ता' हे आर्याः। देवलोकेषु खलु देवानां जघन्येन दशवर्ष सहस्त्राणि स्थितिः प्रज्ञप्ता, 'तेण परं समयाहियाजाव, तेण परं वोच्छिन्ना देवा य, देवलोगा य, सच्चेणं एयम?' तेन परं-तदनन्तरं, समयाधिका, यावत्-द्वित्रिचतुः पश्चषट्सप्ताष्टनवदशसंख्यातासंख्यातसमयाधिका उत्कृष्टेन त्रयत्रिंशम् सागरोपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता, तेन परं-तदनन्तरम् , व्युच्छिन्ना व्यवच्छिना देवाध ३३ सागरोपम से अधिक उत्कृष्ट स्थिति देवलोकों में नहीं होती है और न ऐसे देव हैं कि जिनकी स्थिति इस स्थिति से भी अधिक होती हों।" तो क्या हे भदन्त ! उनका ऐसा कथन सत्य है ? गा असत्य है? 'तएणं समणे भगवं महावीरे। तब श्रमण भगवान महावीर ने 'अजो त्ति' हे आर्यो ! ऐसा संबोधन करके 'ते समणोवासए एवं क्यासी' उन श्रमणोपासकों से ऐसा कहा-'जणं अज्जो! इसिभद्दपुत्ते समणोवासए तुम्भं एवं आइक्खह, जाव परवेह' हे आर्यो! श्रमणोपासक ऋषिभद्रपुत्र ने जो आप लोगों से ऐसा कहा है यावत् प्ररूपित किया है कि देवलोकों में देवों की जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष की है और उत्कृष्टस्थिति ३३ सागरोपम की है इससे आगे स्थिति देवों में और જેની ૩૩ સાગરેપમ કરતાં અધિક ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ હોય.” તે હે ભગવન્! શું तभनु ते ४थन सत्य छे असत्य छ ? “तएणं समणे भगवं महावीरे, अज्जोत्ति ते समणोवासए एवं वयासी" भनी । प्रश्न सांजीन, " આ!એવું સંબોધન કરીને શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે તેમને આ પ્રમાણે
यु-"जंगं अज्जो! इसिभहपुत्ते समणोवासए तुम्भं एव' आइक्खइ जाव परूवेइ" 8 भाय! *पिसपुर श्राप तरी पासे से २ ४ छ, प्रतिપાદિત કરે છે, પ્રરૂપિત કરે છે અને પ્રજ્ઞાપિત કરે છે કે દેવલોકમાં દેવોની જઘન્ય સ્થિતિ ૧૦ હજાર વર્ષની છે અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ૩૩ સાગરોપમની છે તેથી અધિક ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિવાળા દેવલોક પણું નથી અને