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भगवतीस्त्रे आकाशपदेशे ये अजीनाः सन्ति ते द्विविधाः मज्ञप्ताः 'तजहा-रूबी अजीबा य, अरूबी अजीवा य' तयथा-रूपजीवाश्थ, अरूप्यजीवाश्थ, 'स्वी तहेब' रूप्यजीवा स्तथैवपूर्वोत्तरीत्यैव र कन्याः, देशाः, प्रदेशाः परमाणवश्चेति भावः। 'जे अरूबी अजीवा ते पंचविहा पण्णत्ता' ये अप्यजीवाः सन्ति, ते पञ्चविधाः प्रज्ञप्ताः, 'तंजहा-नो धम्मत्यिकार धम्मस्थिकायस्स देसे १' तद्यथा-नो धर्मास्तिकायः एकस्मिन् आकाशपदेशे धर्मारितकायो न संभवति तस्या संख्यातप्रदेशावगादित्वात् , अपितु धर्मास्तिकायस्य देशोऽस्ति १, अत्रेदं वोध्यम्-धर्मास्तिकायस्य एकम्मिन् आकाशन्द्रियों के प्रदेश हैं और एक अनिन्द्रिय जीच के प्रदेश है २, एकेन्द्रियों के प्रदेश हैं और अनिन्द्रियों के प्रदेश हैं ३, 'जे अजीवा ते दुविहा पण्णत्ता' अघोलोजपक्षेत्रलोक के एक आकाशप्रदेश में जो अजीव हैं, वे दो प्रकार के कहे गरे हैं- तंजहा' जैसे-'हवी अजीग थ, अरूवी अजीवा य' स्पी अजीब और अल्पी अजीव 'स्वी तहेव 'रूपी अजोव स्कन्ध के देश, स्कंध के प्रदेश और परमाणु हैं। 'जे अल्धी अजीवाते पंचविहा पण्णत्ता' तथा जो अरूपी अजीब हैं वे पांच प्रकार के कहे गये हैं-' तंजता वे ये हैं-'नो धम्नत्यिकाए, धम्मत्यिकायरस देसे १,' नोधर्मास्तिकाय धर्मारिनकायका देश, एक आकाशप्रदेश में धर्मास्तिकाय पूरा का पूरा नहीं रह सकता है, क्यों कि यह द्रव्य असंख्यातप्रदेशावगाही है । अतः वहां धर्मास्तिकाय का देश है १ । यहां यह समझना प्राय . "जे अजीवा ते दुविहा पणत्ता" मधेसी ३५ क्षेत्र
४ मा प्रदेशमा म छ, मे. ४२ना है. छ. “ तजहा" तमा । नीये प्रमाणे छे. 'रूवो अजीवा य, अरूवी अजीवा य" (१) ३. म अने (२) ४३५. २५04. " रूबी तहेव" ३० म०७१ २४.५, २४न्धन ।। २४न्धन प्रश। भने ५२मा ३५ डाय छे. “जे अरूवी अजीवा पंचविहा पण्णत्ता" तथा "३५० म०१ छ तेना पाय प्रार
॥ छ. “ तंजहा" २i , "नो धम्मस्थिकाए, धम्मस्थिकायरस देसे १,” (१) ને ધર્માસ્તિકાય રૂપ ધર્માસ્તિકાયનો દેશ (અંશ) એક આકાશ પ્રદેશમાં ધર્માસ્તિકાય પૂરેપૂરૂં રહી શકતું નથી, કારણ કે તે દ્રવ્ય અસંખ્યાત પ્રદેશવગાહી હોય છે. તેથી ત્યાં ધર્માસ્તિકાયનો દેશ (અંશ) જ સંભવી શકે છે.