________________
५३०
भगवतीसूत्रे करेंति' ईहामनुमविश्व तस्य स्वप्नस्य अर्थावग्रहणं कुर्वन्ति, 'करेत्ता, अन्नमण्णेणं सद्धिं संचालति' छत्वा-फलं विज्ञाय अन्योन्येन सार्द्धम् संचारयन्ति-परस्परस्वप्नफलं विचारयन्ति, 'संचालेत्ता तस्स मुविणस्स लट्ठा गहियटा, पुच्छियट्ठा, विणिच्छियट्ठा, अभिगयट्ठा, बलस्स रण्णो पुरओ मुविणसत्थाई उच्चारेमाणा उच्चारेमाणा एवं चयामी'-परम्परं संचार्य-विचार्य, तस्य स्वप्जस्य लब्धार्थाः-स्वतो. ज्ञातार्थाः, गृहीतार्थाः-परतो निश्चितार्थाः, संशये सति परस्परतः पृष्टार्थाः, विनिश्चितार्थाः प्रश्नानन्तरं विनिर्णीतार्थाः, अभिगतार्थाः-अभिगतार्थाः, वलस्य राज्ञः बाद में विशेषरूप से-ईहा रूप से-विचार किया 'अणुप्पविलित्ता तस्स सुविणस्स अत्थोग्गहण करेंति' विचार करने के बाद फिर उन्हों ने उस स्वप्न की यथार्थता का निश्चय किया 'करेत्ता अन्नमन्नेणं सद्धिं संचालेंति' यथार्थता का निश्चय करके फिर परस्पर में उन्हों ने इस में स्वप्नफल का विचार किया 'संचालित्ता तस्ल सुविणस्स लट्ठा गहियट्ठा पुच्छियटा, विणिच्छियट्टा, अभिगवट्ठा, बलस्स रणो पुरओ सुविणसत्थाई उच्चारमाणा उच्चारेमाणा एवं क्यासी' स्वमफल का विचार करके जब वे स्वतः उस स्वप्नफल के लट्ठा लब्धार्थवाले हो गये, दूसरों से निश्चित किये गये उसके अर्थवाले हो गये, पुच्छियट्ठा पूछ पांछ कर अपने संशय को दूर करने वाले बन गये, विणिच्छियट्ठा स्वप्न के अर्थ को विलकुल अच्छी तरह से निीत कर चुकने वाले पन गये और अभिगयट्ठा लव प्रकार से अर्थ के ज्ञाता बन गये, तब बियार ४ी. " अणुप्पविमित्ता तस्स सुविणस्न पत्थोगगहण करेंति" प्रश्नमा 8. तरी तभ ते सननी यथा ताना निय या. “करेत्ता अममन्त्रण सद्धिं सचालेंति" त्या२ मा तमो मे भील साये या वियार। शन त सननस विषे विश२ ध्या. “ प्रचालित्ता तस्स सुविणस्य बद्धट्ठा गहियदा पुच्छियट्ठा, विणिच्छियट्ठा, अभिगयटा, बलस्य रणो पुरओ सुविणसस्थाई उच्चारेमाणा उच्चारेमाणा एवं वयासी" २१ सन। विया२ शन ल्यारे તેમણે તે સ્વપ્ન ફલને “રુદ્ધ અર્થ જાણી લીધે, એક બીજા સાથે તેમના નિર્ણય भी नयां, 'पुच्छियट्ठा' ५७५२७ ४ीने न्यारे तेगा । ५ प्रा२ना सशयथा २हित मनी गया, न्यारे तेभ तेना मन। 'विणिच्छियदा' मम निय
शाधी, भने न्यारे तेभर मधाशते 'अभिगयदा' पूर्वा५२ ३३ अर्थ mejी લીધે, ત્યારે તેમણે બલરાજાની સમક્ષ સ્વ'નશાસ્ત્રોને ફરી ફરીને આધાર આપી