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भगवतीसरे उत्पन्नः, 'तत्थ ण अत्थेगइयाणं देवाण दस सागरोबमाई ठिई पण्णत्ता' तत्र खलुब्रह्मलोके कल्पे, अत्त्ये केषां देवानां दश सागरोपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता, 'तत्य णं महब्बलस्स वि दस सागरोवमाई ठिई एण्णत्ता' तत्र खलु-ब्रह्मलोके कल्पे महाबलस्या पि दश सागरोपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता, एवं रीत्या भग. वान् सुदर्शनम्पति पूर्वजन्मवृत्तान्तं स्मारयन् अन्ते उपसंहरति-' से णं तुम सुदंसणा ! बंभलोगे कप्पे दस सागरोक्माइ दिवाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्ता' हे सुदर्शन ! तत् तस्मात्कारणात् , खलु निश्चयेन त्वं ब्रह्मलोके कल्पे महाबलो देवो भूत्वा दश सागरोपमानि दिव्यान् भोगभोगान भुञ्जानो विहृत्यस्थित्या ताओ वेव देवलोगाओ उक्खपणं, भवखणं, ठिइक्खएण, अणंतरं चयं चात्ता, इहेब वाणियगामे नयरे सेहि कुलंसि पुत्तत्ताए पञ्चायाए' तस्मात् 'तत्वणं अत्यंगझ्याणं देवाणं दस सागरशेषमाइं लिई पण्णत्ता' यहां पर । कितनेक देवों की १० सागरोपम की स्थिति कही गई है। 'तत्थणं महब्बलस्स वि दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता' इनमें महाबल की भी १० ही लागरोपन की स्थिति हुई। इस प्रकार भगवान् सुदर्शन सेठ को पूर्वजन्म का स्मरण कराते हुए अन्त में उपसंहार के रूप में उनसे कहते हैं-'से गं तुमं सुदसणा! बंभलोगे कप्पे दस सागरोधमाइं दिव्वाई भोगभोगाई झुंजमाणे विहरित्ता' हे सुदर्शन ! इस प्रकार से तुम ब्रमलोक कल्प में, महाबल की पर्याय का परित्याग करके देव हुए और १० सागरोपम तक यहां दिव्य भोग भोगों को भोगते रहे-बाद में 'ताओ चेव देवलोगाओ आउखएणं, भवक्खएणं, लिहक्खएणं अणं. अत्यंगइयाणं देवाणं दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता" पोन सा देवानी स्थिति इस सागरे।५भनी ही छे “तत्थणं महमलस्व वि दस सागेरोवमाई ठिई पण्णत्ता" महामद ५ इस सागपनी स्थितिवार १३ ત્યાં ઉત્પન્ન થયે. આ રીતે મહાવીર પ્રભુ સુદર્શન શેઠને તેમના પૂર્વજન્મનું वृत्तान्त डान, ५ २ ३२ तमन मा प्रभाये ४ -" से णं तुम सदंप्रणा! वंभलोगे कप्पे दस सागरोवमाई दिव्वाई भोगभोगाई मुंजमाणे विहरिसा હે સુદર્શન! આ રીતે મહાબલ રૂપે મનુષ્ય ભવનો ત્યાગ કરીને, તમે બ્રહ્મલેક કપમાં દેવની પર્યાયે ઉત્પન્ન થયા હતા. દસ સાગરેપમ પ્રમાણે કાળ अधी त्यांना हव्याशापमान सागवान “ ताओ चेव देवळोगाओ आउछएण, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता इहेव वाणियगामे नयरे सेट्टि