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भगवतीले जाव ससिब पियदेमणे नरवई मज्जणघराओ पडिनिक्खमई' यथा भोपपातिक सूत्रपूर्वार्धे अष्टचत्वारिंशत्तमे सूत्रे अट्टनशालावर्णन मज्जनगृहवर्णनंच प्रतिपादित तथैवाप्रापि अट्टनशाला, तथैव मज्जनगृहंच प्रतिपत्तव्यम् , यावत् तत्र अनेकन्यायामयोग्यावलानव्यामर्दनमल्लयुद्धकरण:-इत्यादि, तत्र अनेकानि व्यायामार्थ यानि योग्यादीनि तानि तथाविधैरित्यर्थः, तत्र योग्या-गुणनिका, वल्गनम्उल्ललनम् , व्यामर्दनम्-परस्परमझमोटनम् , इत्यादिरीत्या व्यायामशालाव्यतिकरः प्रतिपादितः, मज्जनगृहव्यतिकरस्तु-यत्रैव मज्जनगृहम् तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य मज्जनगृहम् अनुमविशति, समन्ततो जालकाभिरमणीये विचित्रमणिरत्नकुहिमनले, रमणीये स्नानमण्डपे नानामणिरत्नभक्तिचित्रे स्नानपीठे सुखनिपण्णः, पियदलणे नरवई मज्जणघराओ पडिनिक्खामह' जिस प्रकार से
औपपातिक सूत्र के पूर्वार्ध में ४८ वें सूत्र में अनशाला-व्यायामशाला का वर्णन आया है और स्नानगृह का वर्णन आया है-उसी प्रकार से यहां पर भी इन दोनों का वर्णन जानना चाहिये यावत्-" तत्र अनेक व्यायामयोग्यावलानव्यामर्दनमल्लयुद्धकरणे” इत्यादि तात्पर्य यह है कि वहां अनेक व्यायामयोग्य आदिकों से उसने व्यायाम किया योग्या शब्द का अर्थ गुणनिका, वलान शब्दका अर्थ उल्ललन-दौड़ना, और धामर्दन का अर्थ परस्पर में अगों को भी ना है इत्यादि रीति से व्यायाम का वर्णन वहां कहा गया है । तथा मज्जनगृहका वर्णन भी वहीं पर किया गया है। इस प्रकार वे चल राजा व्यायाम शाला से निकलकर स्नानगृह की ओर गये और जाकर उसमें प्रविष्ट हुए। स्नानगृह का वर्णन "समन्ततो जालकाभिरमणीये, विचित्रमणिरत्नमसिव्य पियदंषणे नरवई मज्जणघरालो पहिनिक्खमइ” गोषपाति सूत्रना પૂર્વાર્ધના ૪૮માં સૂત્રમાં વ્યાયામશાળા અને સ્નાનગૃહનું જેવું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે, એવું જ વર્ણન બલરાજાની વ્યાયામશાળા અને તેમના સ્નાનગૃહ, विष मह ७) ४२४ " तत्र अनेक व्यायामयोग्यावलानव्यामर्दनमल्लयुद्धकरणः " व्यायामनु मा प्रभारी पन ४२वामा माधु-व्यायामशाળામાં જઈને તેણે વ્યાયામના અનેક દાવ કર્યા, દેડવાની તથા મલે સાથે दुस्ती ४२वानी ४सरत मा . “ योग्या" सट गुणनि, “हान" એટલે દેડવું અને “વ્યામઈન” એક બીજાની સાથે અંગોને ભીડાવવા રૂપ કુરતી
વ્યાયામશાળામાંથી નીકળીને તે નાનગૃહમાં આવ્યા પપાતિક સૂત્રમાં नगर्नु भा प्रमाणे पन यु-समन्ततो जालकाभिरमणीये, विचित्रम.