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भगवती लोकक्षेत्रलोकः १५ईषत्पागभारपृथिव्यू लोकक्षेत्रलोकइति । गौतमः पृच्छतिअहोलोगखेत्तलोए णं भंते ! हि संठिए पयत्त ?' हे भदन्त | अधोलोकक्षेत्रलोकः खलु कि संस्थितः, किम्-कीश, संस्थितं-संस्थानं यस्य सः तथाविधः किमा. कारका प्रज्ञप्तः? भगवानाह-'गोयमा! तप्पागारसंठिए एज्यते' हे गौतम | अधोलोकक्षेत्रलोकः तमाकारसंस्थितः-तमः-लघुनौका तदाकारः अधोमुखशरा वाकारसंस्थानः प्रजप्तः, तदाकारो यथा A इति । गौतम पृच्छति-तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते ! कि संठिए पण्णत्ते?' हे भदन्त ! तिर्यग्लोकक्षेत्रलोकः खलु कि संस्थितः किमाकारः प्रज्ञान: ? भगवानाह-'गोयमा! बल्लरिसंठिए पन्नत्ते' ऊर्यलोकरूपक्षेत्रलोक १३-३वेयकविमान ऊर्वलोकरूपक्षेत्रलोक अनुत्तरविमान ऊर्ध्वलोकरूपक्षेत्रलोक, १४ एवं ईपत्माग्भारपृथिवीअवलोकरूप क्षेत्रलोक ५१ ॥ ____ अब गौतम स्वामी प्रभु से पूछते हैं-'अहो लोगखेत्तलोए णं भंते ! कि संठिए पण्णत्त' हे भदन्त ! अधोलोकल्प जो क्षेत्रलोक है उसका संस्थान-आकार कैसा है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा' हे गौतम !' तप्पागारसंहिए पत्ते' अधोलोकल्प क्षेत्र लोक
का आकार लप्र के आकार जैसा है. लघु नौका का नाम तय है। इसका संस्थान अधोमुग्ववाले शराव के जैसा होता है. इसका आकार का प्रतीक टीका में दिया है तो वहां देख लेवें. __अब गौतमस्वामी प्रभु से पूछते हैं-- निरिलोय खेतलोए णमंते । कि संठिए पगत्ते' हे भदन्त ! तिर्यग्लोकरूप क्षेत्रलोक का आकार कैसा है ? इसके उत्तर में प्रयु कहते हैं-'गोथमा' हे गौतम ! 'झल्लरिसैठिए (૧૨) અશ્રુત ઉર્વલેક રૂપ ક્ષેત્રલોક, ૧૩) રૈવેયક વિમાન ઉર્વિલેકરૂપ क्षेत्र, (१४) अनुत्तर विमान Bq ३५ क्षेत्र गने (१५) ध्यत्माભાર પૃથ્વી ઉર્વિલેકરૂપ ક્ષેત્રલેક
હવે ગૌતમ સ્વામી તે પ્રત્યેકના સંસ્થાન (આકાર) વિશે પ્રશ્ન પૂછે છે
" अहोलोगखेत्तलोएण' भवे! किं सठिए पण्णत्त ?" मगवन् । અધેલોકરૂપ જે ક્ષેત્ર છે તેને આકાર કેવો કહ્યો છે ? . __मडावी२ प्रभुने। उत्तर .. “ गोयमा ' है गौतम। “तप्पागारसंठिए पण्णत्ते" मधेसी ३५ क्षेत्रानो मा२ त५ (नानी नौस) न वा डाय છે તેનું સંસ્થાન (આકાર) ઊંધા પાડેલા શરાવ શિકાર ) જેવો હોય છે. તેને આકાર ટીકામાં બતાવવામાં આવ્યું છે તે પ્રમાણે સમજી લેવા
गीतमस्वाभाना प्रश्न-"तिरियलोयखेत्तलोए ण' भते । किं सठिए पणत्ते ?" मगवन् ! तिय ३५ क्षेत्र ने। २ । डाय छे ?
महावीर प्रभुना उत्तर- “गोयमा” गीतम!" झल्लरिसठिए पण्णत्ते"